यवन साम्राज्य के शासक का इतिहास

शक और पार्थियाई वंश का इतिहास

यवन साम्राज्य के शासक

शक वंश

👉 शक शासक यूनानियों के बाद आये थे। इसको पाँच शाखाओं में विभाजित किया गया था। इनकी प्रत्येक शाखा की राजधानी अफगानिस्तान और भारत में अलग – अलग क्षेत्रों में थीं।

शक और पार्थियाई वंश का इतिहास

👉 पहली शाखा की राजधानी अफगानिस्तान में , दूसरी शाखा की राजधानी पंजाब में (राजधानी- तक्षशिला), तीसरी शाखा की राजधानी मथुरा, चौथी शाखा की राजधानी पश्चिमी भारत में एवं पाँचवीं शाखा की ऊपरी दक्कन में थीं। इन्होंने यहाँ पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था । शकों का प्रथम राजा मोअ था। यह मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे और भारत में चरागाह की खोज के लिए आए थे।

👉  उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने 58 ईसा पूर्व में शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थीं।

👉 58 ईसा पूर्व से शकों पर विजय के उपलक्ष्य में एक नया संवत् विक्रम संवत् के नाम से प्रारंभ हुआ। उसी समय से ‘विक्रमादित्य’ एक लोकप्रिय उपाधि बन गयी, जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में 14 तक पहुँच गयी। गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था।

👉 पश्चिम भारत में शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में सबसे लम्बे समय तक प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा हैं।

👉 गुजरात में चलते समुद्री व्यापार के तहत पश्चिमी भारत की शाखा से काफी लाभ मिला और चाँदी के सिक्के अधिक मात्रा में जारी किए।

👉 ” सई या सईबाघ ” चीनी ग्रंथों में शकों को कहा जाता था। अपने आप को शक राजा भारत में क्षत्रप कहते थे।

👉 यवन साम्राज्य में रुद्रदामन प्रथम शक शासकों में सबसे प्रतापी राजा था। इसने गुजरात के सबसे बड़े भाग पर 130 ईस्वी से 150 ईस्वी के मध्य शासन किया था।

👉 रुद्रदामन प्रथम का अभिलेख जूनागढ़ से प्राप्त विशुद्ध संस्कृत भाषा में पहला लम्बा अभिलेख ( गिरनार अभिलेख ) हैं। इसके पहले के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में रचे गए थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में निर्मित कठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील का पुनरुद्धार रुद्रदामन प्रथम ने करवाया था।

पार्थियाई या पहलव 

👉 शकों के आधिपत्य के बाद पश्चिमोत्तर भारत में पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ। पहलवों का सबसे प्रसिद्ध राजा गोंडोफर्निस था। इसी के शासन काल में भारत में सेंट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए आया था।

👉 पार्थियाई मुलत: पार्थिया वर्तमान ईरान के निवासी थे।

कुषाण वंश

👉 कुषाण पहल्व या पार्थियाई के बाद आए, जिसे यूची एवं तोखरी भी कहते थे ।

👉 यह यू-ची जनजाति से सम्बन्धित थे। वे पश्चिमी चीन से भारत आये थे।

कुषाण वंश का इतिहास

👉 यूची नामक एक कबीला पाँच कुलों में बट गया था, उन्हीं में एक कुल के थे कुषाण। इस वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस को माना जाता हैं।

कनिष्क

👉 कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था। कनिष्क ने 78 ईस्वी (गद्दी पर बैठने के समय) में एक सम्वत् को प्रचलित किया था। जो शक संवत् कहलाता है।

👉 पुरुषपुर (पेशावर) को इसने अपनी राजधानी बनाया था और मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी थी।

👉 ‘कनिष्कपुर’ नामक नगर की स्थापना इसी ने कश्मीर में की थीं।

👉 यह बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था। इसके शासनकाल में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कुण्डल वन (कश्मीर) में ईस्वी की प्रथम शताब्दी के समय में वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई थीं।

👉 कनिष्क को चीनी जनरल पेन चौआ ने हराया था।

कुषाण वंश के सिक्के

👉 स्वर्ण की मुद्राएँ भारी संख्या में आरम्भिक इस शासकों ने जारी की थीं, इन स्वर्ण मुद्राओं की शुद्धता गुप्त काल की स्वर्ण मुद्राओं से ज्यादा उत्कृष्ट है। कुषाणों ने सबसे  शुद्ध सोने के सिक्के चलाये थे।

👉 कुषाणों ने सर्वाधिक संख्या में ताँबे के सिक्कों को उत्तरी तथा उत्तरी पश्चिमी भारत में जारी किया था।

👉 इस शासक राजवैद्य चरक आयुर्वेद का विख्यात विद्वान था जिसने संस्कृत में चरक संहिता की रचना की थीं, जिसमें आठ भाग एवं 120 अध्याय है। यह भारतीय चिकित्सा शास्त्र का विश्व कोश कहलाता है।

👉 वसुमित्र महाविभाष सूत्र के रचनाकार थे। इसे ही बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है। बौद्धों का रामायण ‘बुद्धचरित’ की रचना कनिष्क के राजकवि अश्वघोष ने की थीं।

👉 वसुमित्र, पार्श्व, नागार्जुन, महाचेत और संघरक्ष भी कनिष्क के दरबार की विभूति थे।

👉 भारत का आइन्सटीन नागार्जुन को कहा जाता है। इनकी पुस्तक माध्यमिक सूत्र हैं, इसमें नागार्जुन ने सापेक्षता का सिद्धान्त दिया गया हैं।

👉 इस वंश के शासक कनिष्क की मृत्यु 102 ईस्वी में हो गयी थीं। वासुदेव इस वंश का अंतिम शासक था।

👉 इस वंश राजा देवपुत्र कहलाते थे। यह उपाधि कुषाणों ने धीनियों से ली।

👉 कनिष्क के शासनकाल में गांधार शैली एवं मथुरा शैली का विकास हुआ था। कुषाणकालीन मूर्तियों का संग्रह मथुरा संग्रहालय में अधिक मात्रा में है। तक्षशिला गंधार कला के लिए प्रसिद्ध है।

👉 शासकों में रेशम मार्ग पर नियंत्रण रखने वाले सबसे प्रसिद्ध शासक कुषाण थे। कुषाण साम्राज्य में मार्गों पर सुरक्षा का प्रबंध था। कनिष्क ने रेशम मार्ग का आरंभ करवाया था।

👉 चीन में सबसे पहले रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार हुआ था।

👉 विशेष प्रकार के शाटक नामक वस्त्र का निर्माण केन्द्र मथुरा था।

👉 वास्तुकला के क्षेत्र में इस काल में सबसे अधिक विकास हुआ था। बुद्ध की खड़ी प्रतिमा का निर्माण कुषाण काल में ही हुआ था।

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