अशोक
अशोक का कालानुक्रम
🔰 बिन्दुसार का उत्तराधिकारी के रूप में अशोक मौर्य साम्राज्य का सम्राट बना हुआ जो 273 ईसा पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा था। इसकी माता का नाम सुमद्रांगी था। इसका कार्यकाल 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व के मध्य था।
🔰 इसने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए प्रतिपादित ” धम्म ” के लिए विश्व विख्यात था अशोक राजगद्दी पर बैठने के समय अवन्ति का राज्यपाल था।
शिलालेख
🔰 इसका नाम मास्की, गुजर्रा, नेत्तुर एवं उडेगोलम के लेखों में अशोक मिलता है।
🔰 इसका इतिहास हमें उसके अभिलेखों से ही प्राप्त होता है। इसके अभिलेखों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- 1. शिलालेख 2. स्तम्भलेख 3. गुहालेख।
🔰 इसके इतिहास को लिखने का प्रयास डी. आर. भंडाकर जैसे इतिहासकार ने अभिलेखों के आधार पर किया हैं।
🔰 कर्नाटक के कलाबुरगी जिले के चितापुर तालुक के कनगनहल्ली से प्राप्त मूर्तिशिल्प उभारदार (रिलीफ स्कल्प्चर) शिलालेख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के साथ राण्यो अशोक (राजा अशोक) उल्लिखित है।
मौर्य प्रान्त और उनकी राजधानियाँ
क्र.सं. | मौर्य प्रांत | राजधानी |
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1. | उत्तरापथ | तक्षशिला |
2. | अवन्ति राष्ट्र | उज्जयिनी |
3. | कलिंग | तोसली |
4. | दक्षिणापथ | सुवर्णागिरि |
5. | प्राशी (पूर्वी प्रांत) | पाटलिपुत्र |
अशोक के प्रमुख शिलालेखों का स्थान एवं संबंधित राज्य
क्र.सं. | शिलालेखों का स्थान | संबंधित राज्य |
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1. | शाहवाजगढ़ी | पेंशावर (पाकिस्तान) |
2. | मनसेहरा | हजारा (पाकिस्तान) |
3. | कालसी | उत्तराखंड |
4. | गिरनार | गुजरात |
5. | धौली व जौगढ़ | ओडिशा |
6. | एर्रगुडि,राजुल, मंडगिरि | आंध्र प्रदेश |
7. | सोपारा | महाराष्ट्र |
8. | रूपनाथ तथा गुर्जरा | मध्य प्रदेश |
9. | सासाराम | बिहार |
10. | भद्रू (वैराट) | राजस्थान |
11. | मास्की, गोविमठ, ब्रह्मगिरि,सिद्धपुर, जंटिगरामेश्वर, कनगनहल्ली, पालकिगुण्डू | कर्नाटक |
12. | अहरौरा | उत्तरप्रदेश |
🔰 भीमा नदी के बाएँ तट पर कनगनहल्ली स्थित है।
🔰 इसने स्वयं को मगध का राजा भ्रावु अभिलेख में बताया है।
🔰 पुराणों में इसको अशोकवर्धन कहा गया है। देवनामपिय पियदस्सी इसका ही नाम था।
🔰 इसने अपने शासन के 8वें वर्ष बाद लगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया। इसका उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में मिलता हैं। इस युद्ध में हुए भारी रक्तपात को देख इसने युद्ध नीति को छोड़ धम्म नीति का पालन किया था।
🔰 प्लिनी का कथन हैं कि पाटलिपुत्र में डियानीसियस नामक एक राजदूत मिस्र के राजा फिलाडेल्फस [टॉलमी II ] ने भेजा था।
धर्म
🔰 इसने बौद्ध भिक्षु उपगुप्त से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थीं।
🔰 यह पहले ब्रह्मण धर्म का अनुयायी था। कल्हण के राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि वह शेव धर्म का उपासक था। उसने अपने बड़े भाई सुमन के पुत्र निग्रोध से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपना लिया। इसके धम्म की परिभाषा राहुलोवादसुत्त से ली गयी हैं
🔰 इसने अपने शासन के 10वें वर्ष एक उपासक के रूप में बोधगया की और 12वें वर्ष निगालि सागर की एवं 20वें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थीं।
🔰 यह व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म का अनुयायी था। यह जानकारी हमें अहरौरा अभिलेख से मिलती हैं इसकी आस्था का रुम्मिनदेई स्तम्भ अभिलेख और निगाली सागर स्तम्भ अभिलेख बौद्धमत में स्पष्ट प्रमाण मिला हैं।
अशोक से संबंधित शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय
शिलालेख | विषय |
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पहला | इसमें पशुबलि की निंदा की गयी है। |
दूसरा | मनुष्य व पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख है। |
तीसरा | इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि ये हर पाँचवें वर्ष के उपरान्त दौरे पर जाएँ। इसमें कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख है। |
चौथा | इस शिलालेख में धम्मघोष की घोषणा, भेरीघोष की जगह की गयी है। |
पाँचवाँ | इसमें धर्म-महामात्रों की नियुक्ति की जानकारी मिलती है। |
छठा | आत्म-नियंत्रण की शिक्षा इस शिलालेख में दी गयी है। |
7वाँ व 8वाँ | इन अभिलेख में अशोक की तीर्थ-यात्राओं का वर्णन किया गया है। |
नौवाँ | इसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख है। |
दसवाँ | इस अभिलेख में अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित के बारें में सोचें। |
ग्यारहवाँ | इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है। |
बारहवाँ | इस शिलालेख में सभी प्रकार के विचारों के सम्मान एवं स्त्री महामात्रों की नियुक्ति की बात कही गयी है। |
तेरहवाँ | इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय परिवर्तन की बात कही गयी है। इसी में पाँच यवन राजाओं के नामों का उल्लेख है, जहाँ उसने धम्म प्रचारक भेजे। |
चौदहवाँ | अशोक ने धार्मिक जीवन बिताने के लिए जनता को प्रेरित किया था। |
निर्माण कार्य
🔰 इसने अपने शासकीय एवं राजकीय आदेशों को शिलालेखों पर खुदवाकर साम्राज्य को विभिन्न भागों में स्थापित किया था।
🔰 इसने बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण आजीवकों को रहने के लिए करवाया था। , जिनका नाम कर्ज, चोपार, सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था। इसके पौत्र दशरथ ने आजीविकों को नागार्जुन गुफा प्रदान की थी। इसके 7वें अभिलेख में आजीविकों का उल्लेख किया गया है तथा को आजीविकों के हितों का ध्यान रखने के लिए महामात्रों कहा गया है।
🔰 इसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। इसने 84,000 स्तूपों का निर्माण बौद्ध परंपरा और उनके लिपियों के अनुसार किया था।
🔰 इसने सबसे पहले भारत में शिलालेख का प्रचलन किया था।
भाषा
🔰 इसके शिलालेखों में ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक, यूनानी एवं अरामाईक लिपि का प्रयोग किया गया है। ग्रीक तथा अरामाईक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से एवं खरोष्ठी लिपि का अभिलेख पाकिस्तान के पेशावर के पास शाहबाजगढ़ी एवं मनसेहरा से और शेष ब्राह्मी लिपि के अभिलेख भारत से प्राप्त हुए हैं।
खरोष्ठी लिपि को दायें से बायें ओर लिखा जाता हैं।
🔰 मौर्य साम्राज्य में उच्च स्तर के अधिकारियों को तीर्थ कहा जाता था, जिनकी संख्या 18बताई गई हैं।
अर्थशास्त्र में वर्णित तीर्थ
1. | मंत्री | प्रधानमंत्री |
2. | पुरोहित | धर्म एवं दान-विभाग का प्रधान |
3. | सेनापति | सैन्य विभाग का प्रधान |
4. | युवराज | राजपुत्र |
5. | दौवारिक | राजकीय द्वार-रक्षक |
6. | अन्तर्वेदिक | अन्तःपुर का अध्यक्ष |
7. | समाहर्ता | आय का संग्रहकर्ता |
8. | सन्निधाता | राजकीय कोषाध्यक्ष |
9. | प्रशास्ता | कारागार का अध्यक्ष |
10. | प्रदेष्ट्रि | कमिश्नर |
11. | पौर | नगर का कोतवाल |
12. | व्यवहारिक | प्रमुख न्यायाधीश |
13. | नायक | नगर-रक्षा का अध्यक्ष |
14. | कर्मान्तिक | उद्योगों एवं कारखानों का अध्यक्ष |
15. | मंत्रिपरिषद् | अध्यक्ष |
16. | दण्डपाल | सेना का सामान एकत्र करने वाला |
17. | दुर्गपाल | दुर्ग-रक्षक |
18. | अंतपाल | सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक |
अभिलेखों का वर्गीकरण
🔰 अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- 1. शिलालेख, 2. स्तम्भलेख तथा 3. गुहालेख ।
🔰 इसके शिलालेखों का पता सर्वप्रथम टी. फैन्थेलर ने 1750 ईस्वी में लगाया था और इनकी संख्या-14 है। इन अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय 1837 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेप को जाता हैं।
🔰 इसके स्तम्भ-लेखों की संख्या 7 है, जो केवल ब्राह्मी लिपि में लिखे गए है। यह छह अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है-
1. प्रयाग स्तम्भ-लेख :- यह पहले कौशाम्बी में स्थित था। इस स्तम्भ-लेख को अकचर ने इलाहाबाद के किले में स्थापित किया गया हैं।
2. दिल्ली टोपरा :- यह स्तम्भ लेख पहले टोपरा में स्थित था इस स्थम्भ लेख को बाद में फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया था।
3. दिल्ली-मेरठ :- यह स्तम्भ लेख पहले मेरठ में स्थित था। इस स्थम्भ लेख को बाद में फिरोजशाह तुगलक के द्वारा मेरठ से दिल्ली लाया गया है।
4. रामपुरवा :- यह स्तम्भ-लेख बिहार के चम्पारण में स्थापित है। इसकी खोज कारलायल ने 1872 ईस्वी में की थीं।
5. लौरिया अरेराज :- यह स्थम्भ लेख बिहार के चम्पारण में स्थापित हैं।
6. लोरिया नन्दनगढ़ :- यह स्तम्भ लेख बिहार के चम्पारण में स्थापित हैं। इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है।
🔰 रानी के अभिलेख’ के नाम से कौशाम्बी को जाना जाता हैं।
🔰 रुम्मिदेई अभिलेख इसका सबसे छोटा अभिलेख हैं और इसका सबसे लम्बा अभिलेख सातवाँ अभिलेख है। लुम्बिनी में धम्म-यात्रा के दौरान अशोक ने भू-राजस्व की दर को घटाकर 1/8 भाग कर दिया और लुम्बिनी ग्राम का धार्मिक कर माफ कर दिया। इसका वर्णन इस अभिलेख में किया गया हैं।
🔰 महास्थान (बांग्लादेश) से प्राप्त सोहगीरा का ताम्रपत्र अभिलेख में मौर्यकाल में अकाल, सूखा जैसे दैवी प्रकोप के समय राज्य द्वारा राहत कार्य किए जाने का विवरण प्राप्त होता है।
🔰 सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं। इसकी घोषणा प्रथम पृथक् शिलालेख में की गई हैं।
🔰 ‘ग्रीक और अरामाइक भाषाओं में इसका शार-ए-कुना (कंदहार) अभिलेख प्राप्त हुआ है।
🔰 साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति के पूर्व इनके चरित्र को काफी जाँचा-परखा जाता था, जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता था।
🔰 सम्राट् की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् होती थी जिसमें सदस्यों की संख्या 12, 16 या 20 हुआ करती थी।
🔰 अर्थशास्त्र में जासूस, चर को कहा गया है।
🔰 इसके समय मौर्य साम्राज्य में प्रांतों की संख्या 5 थी। प्रांतों की चा कहा जाता था। इन प्रांतों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे।
🔰 प्रांतों का विभाजन विषय में किया गया था, जो विषयपति के अधीन होते थे।
🔰 ” कार्य ग्राम ” इस प्रशासन की सबसे छोटी इकाई समिति थी, इसका मुखिया ग्रामीक कहलाता था।
🔰 प्रशासकों में सबसे छोटा गोप होता था, जो दस ग्रामों का शासन संभालता था।
प्रशासनिक समिति एवं उसके कार्य
समिति | कार्य |
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प्रथम | उद्योग एवं शिल्प कार्य का निरीक्षण |
द्वितीय | विदेशियों की देखरेख |
तृतीय | जन्म-मरण का विवरण रखना |
चतुर्थ | व्यापार एवं वाणिज्य की देखभाल |
पंचम | निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण |
षष्ठ | बिक्री कर वसूल करना |
🔰 इसके समय में बिक्री-कर के रूप में मूल्य का 10वाँ भाग वसूला जाता था, इसे बचाने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था।
🔰 एग्रोनोमाई मार्ग मेगस्थनीज के अनुसार एक निर्माण अधिकारी था।
🔰 युद्ध-क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करनेवाला अधिकारी नायक कहलाता था।
🔰 गुप्तचर विभाग मौर्य प्रशासन में महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था। गुप्तचर को अर्थशास्त्र में गूढ़ पुरुष कहा गया है तथा एक ही स्थान पर रहकर कार्य करने वाले गुप्तचर को संस्था कहा जाता था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करके कार्य करने वाले गुप्तचर को संचार कहा जाता था।
सैन्य समिति एवं उनके कार्य
समिति | कार्य |
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प्रथम | जलसेना की व्यवस्था |
द्वितीय | यातायात एवं रसद की व्यवस्था |
तृतीय | पैदल सैनिकों की देख-रेख |
चतुर्थ | अश्वारोहियों की सेना की देख-रेख |
पंचम | गजसेना की देख-रेख |
षष्ठ | रथसेना की देख-रेख |
🔰 इसके समय में ” राजुक ” जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को कहा जाता था।
🔰 सरकारी भूमि को सीता भूमि कहा जाता था। बिना वर्षा के अच्छी खेती होनेवाली भूमि को अदेवमातृक कहा जाता था।
🔰 मौर्य काल में अनाज के माप के लिए द्रोण का प्रयोग किया जाता था।
🔰 भारतीय समाज को मेगस्थनीज ने सात वर्गों में विभाजित किया है-1. दार्शनिक, 2, किसान, 3. अहीर, 4. कारीगर, 5. सैनिक, 6. निरीक्षक एवं 7. सभासद ।
🔰 मौर्य साम्राज्य में ” रूपाजीया ” स्वतंत्र वेश्यावृत्ति को अपनाने वाली महिला कहलाती थी।
🔰 मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक था। बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने इसकी हत्या 185 ईसा पूर्व में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नींव डाली।
🔰 अशोकाराम विहार पाटलिपुत्र में स्थित था।