गुप्त साम्राज्य का इतिहास एवं महत्वपूर्ण घटनाएँ

गुप्त साम्राज्य का इतिहास, भारत का स्वर्णकाल

गुप्त साम्राज्य

गुप्त साम्राज्य की उत्पत्ति एवं विकास 

 • आज हम गुप्त साम्राज्य का इतिहास एवं महत्वपूर्ण घटनाएँ के उद्देश्य के अनुसार महत्वपूर्ण जानकारी के बारें में थोड़ी बहुत चर्चा करेंगे कि गुप्त साम्राज्य का उदय प्रयाग के पास कौशाम्बी में तीसरी शताब्दी के अन्त में हुआ था। संभवतः गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे।

गुप्त साम्राज्य का इतिहास, भारत का स्वर्णकाल

गुप्त साम्राज्य के शासक 

गुप्त साम्राज्य के प्रमुख शासक

श्रीगुप्त 

• गुप्त साम्राज्य के संस्थापक के रूप मे श्रीगुप्त को जाना जाता हैं। इसका कार्यकाल लगभग 240 ईस्वी से लेकर लगभग 280 ईस्वी तक माना जाता हैं।  

घटोत्कच 

• श्रीगुप्त के उत्तराधिकारी के रूप में घटोत्कच को जाना जाता हैं और इसका कार्यकाल लगभग 280 ईस्वी से लेकर लगभग 320 ईस्वी के मध्य था।

चन्द्रगुप्त प्रथम 

• गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट् चन्द्रगुप्त प्रथम था। चन्द्रगुप्त लगभग 320 ईस्वी में राजसिंहासन पर बैठा था। इसका विवाह लिच्छवि की राजकुमारी कुमार देवी से हुआ था। इसने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विवाह किया था। तथा चन्द्रगुप्त प्रथम ने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि भी धारण की थीं।

• चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 या 320 ईस्वी में गुप्त संवत् की शुरुआत की थीं।

समुद्रगुप्त 

• समुद्रगुप्त इसका उत्तराधिकारी था , जो लगभग 335 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका कार्यकाल 335 ईस्वी से लेकर 375 ईस्वी के मध्य था। आर्यावर्त के 9 शासकों और दक्षिणावर्त के 12 शासकों को समुद्रगुप्त ने पराजित किया था।इनसे विजय पाने में कारण ही इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था। इसलिए इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता हैं। इसने विक्रमंक, परमभागवत ओर अश्वमेधकर्ता की उपाधि धारण की थीं। यह विष्णु का उपासक था। इसे कविराज के नाम से भी जाना जाता है।

• यह संगीत का बहुत अधिक प्रेमी था। इसका अनुमान उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए का चित्र देखा गया हैं।

• हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था, इसकी जानकारी हरिषेण द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख से मिलती हैं। 

• समुद्रगुप्त की अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ स्थापित किया था।

• समुद्रगुप्त प्रथम गुप्त शासक था जिसने परमभागवत की उपाधि धारण की थीं। इसे परमभागवत, गया एवं नालंदा से मिले दो ताम्रलेखों में कहा गया है।

चन्द्रगुप्त द्वितीय 

• समुद्रगुप्त के बाद इसका उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त द्वितीय बना , जो लगभग 380 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल 375 ईस्वी से लेकर 415 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसके शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान 399 ईस्वी में भारत आया था। यह लगभग 399 ईस्वी से 412 ईस्वी तक भारत में रहा था।

• इसका शासनकाल गुप्तकाल में साहित्य और कला का स्वर्ण-काल कहा जाता है।

• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने चाँदी के सिक्के शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चलाए थे।

• इसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थीं। विक्रमादित्य की उपाधि उज्जैन के शासक ने इससे पहले लगभग 57 ईस्वी पूर्व में पश्चिमी भारत में शक क्षत्रपों पर विजय पाने के उपलक्ष में धारण की थी।

• इसका शासक दरबारी राजकवि शाब था। इसके शासनकाल में विद्या के प्रमुख केन्द्र पाटलिपुत्र और उज्जयिनी  थे।

• चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में अनुश्रुति के अनुसार नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया है। इसके दरबार में नवरत्नों में एक अग्रगण्य महाकवि कालिदास  थे। कालिदास के अलावा इसके दरबार में नवरत्न वेतालभट्ट, धन्वंतरि, घटकर्पर, शंकु ( वास्तुकार ), क्षपणक (फलित ज्योतिष के विद्वान), वाराहमिहिर (खगोल विज्ञानी), वररूचि और अमरसिंह (कोशकार) जैसे विद्वान थे।

• वीरसेन शैव मतावलंबी चन्द्रगुप्त द्वितीय का सान्धिविग्रहिक सचिव था। उदयगिरि पहाड़ी पर एक गुफा का निर्माण शिव की पूजा के लिए वीरसेन ने करवाया था। वीरसेन एक कवि, न्यायमीमांसा, व्याकरण और शब्द का प्रकाण्ड पंडित भी था।

कुमारगुप्त 

• कुमारगुप्त प्रथम या गोविन्दगुप्त,चन्द्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी था। इसका शासनकाल लगभग 415 ईस्वी से लेकर 454 ईस्वी के मध्य था। इसने नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना की थीं।

स्कन्धगुप्त 

• कुमारगुप्त प्रथम के उत्तराधिकारी के रूप में स्कन्धगुप्त राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 455 ईस्वी से लेकर 467 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। 

• गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार स्कन्धगुप्त ने करवाया था।

• सौराष्ट्र के गवर्नर के रूप में स्कन्धगुप्त ने पर्णदत्त को नियुक्त किया था।

• हूणों का आक्रमण इसी के शासनकाल में आरम्भ हुआ था।

• इस वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त था।

गुप्त साम्राज्य का इतिहास एवं महत्वपूर्ण घटनाएँ 

• सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई इस वंश की ‘देश’ थी, ” गोप्ना ” इसके शासक को कहा जाता था। इस वंश की दूसरी प्रादेशिक इकाई भूक्ति या प्रांत थी, ” उपरिक ” जिसके शासक को कहा जाता था। 

• ” विषय या जिला “,  प्रान्त या भुक्ति के नीचे की प्रादेशिक इकाई होती थी, विषयपति इसके प्रमुख कहलाते थे। 

• इस वंश में ” चाट एवं भाट ” पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारियों को कहा जाता था। ” दण्डपाशिक ” पुलिस विभाग का मुख्य अधिकारी कहलाता था।

• ” ग्राम ” प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी। ग्राम-सभा द्वारा ग्राम का प्रशासन संचालित होता था। ग्राम सभा का प्रशासन ग्रामीक के हाथ में होता था और उसके अन्य सदस्य महत्तर होते थे।

• ” पेठ ” ग्राम-समूहों की छोटी इकाई थीं।

• भूमि बिक्री सम्बन्धी अधिकारियों के क्रियाकलापों का उल्लेख गुप्त शासक कुमारगुप्त के दामोदरपुर ताम्रपत्र में मिलता है।

• भू-राजस्व कुल उत्पादन का 1/4 भाग से 1/6 भाग हुआ करता था। गुप्तकाल में ‘भाग’ एवं ‘भोग’ राजस्व कर था, ‘भाग’ उपज का छठा हिस्सा होता था जबकि भोग सब्जी तथा फलों के रूप में दी जाती थी।

• इस वंश मेंराज्य के लिए आय का स्रोत बलात् श्रम (विष्टि) को माना जाता था। इसे जनता द्वारा दिया जाने वाला कर भी माना जाता था।

आर्थिक उपयोगिता के आधार पर निम्न प्रकार की भूमि थी-

  1. क्षेत्र :- कृषि करने योग्य भूमि।    
  2. वास्तु :- वास करने योग्य भूमि।      
  3. चरागाह भूमि :- पशुओं के चारा योग्य भूमि।   
  4. सिल :- ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीं होती थी।       
  5. अप्रहत :- ऐसी भूमि जो जंगली होती थी।

• रहट या घंटी यंत्र का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता था।

• ” ज्येष्ठक ” श्रेणी के प्रधान को कहा जाता था।

• गुप्त वंश के शासनकाल में सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र उज्जैन था। 

• इस वंश के राजाओं ने सबसे ज्यादा सोने के सिक्के स्वर्ण मुद्राएँ ) जारी किए थे। गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ जारी की। अभिलेखों में इन स्वर्ण मुद्राओं को दीनार कहा गया है। गुप्त राजाओं ने गुजरात के बाद बड़ी मात्रा में चाँदी के सिक्के जारी किए जो केवल स्थानीय लेन-देन में चलते थे।

गुप्तकालीन प्रसिद्ध मंदिर

गुप्त साम्राज्य का वर्णन 

• याज्ञवल्पय स्मृति में सबसे पहले कायस्थों का वर्णन मिलता है। कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन जाति के रूप में ओशनम् स्मृति में मिलता है।

• शबर जाति के लोग विंध्य जंगल में अपने देवताओं को मनुष्य का मांस चढ़ाते थे।

• 510 ईस्वी के भानुगुप्त के ऐरण अभिलेख से पहली बार किसी के सती होने का प्रमाण मिलता है, जिसमें किसी भौजराज की मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख मिलता है।

• वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को गुप्त काल में गणिका कहा जाता था। वृद्ध वैश्याओं को कुट्टनी कहा जाता था।

• गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे और इस धर्म को उन्होंने राजधर्म बनाया था। गुप्तों का राज चिह्न विष्णु का वाहन गरुड़ था। गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। यह मंदिर बेतवा नदी के तट पर उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित है।

• संभाजीनगर में स्थित अजन्ता की 29 गुफाओं में से 6 ही वर्तमान में शेष हैं, इन गुफाओं में से गुप्त कालीन गुफा संख्या 16 और 17 ही हैं। इनमें से उत्कीर्ण मरणासन्न राजकुमारी का  प्रशंसनीय चित्र गुफा संख्या 16 में हैं। गुफा संख्या 17 में चित्र हैं। इन चित्रों को चित्रशाला कहा जाता है। इस चित्रशाला में बुद्ध से संबंधित सभी घटनाओं जैसे – बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण के चित्र उद्धृत किये गये हैं।

• बौद्ध धर्म की महायान शाखा से अजंता की गुफाएँ संबंधित हैं।

• गुप्तकाल में निर्मित अन्य गुफा बाघ की गुफा है, यह गुफा विंध्य पर्वत को काटकर बनाई गयी थीं। यह गुफा बाघ नामक स्थान पर मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित हैं।

गुप्त साम्राज्य के ग्रन्थ 

• गुप्तकाल में संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र (संस्कृत) को माना जाता है। इस ग्रन्थ का बाइबिल के बाद दूसरा स्थान है। इस ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित किया गया है-

  1.  मित्रभेद
  2. मित्रलाभ
  3. संधि-विग्रह
  4. लब्ध प्रणाश
  5. अपरीक्षाकारित्य ।

• आर्यभट्टीयम एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रंथ आर्यभट्ट ने लिखे थे। आर्यभट्ट ने सबसे पहले सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण का वास्तविक कारण बताया था। पहले भारतीय नक्षत्र वैज्ञानिक आर्यभट्ट थे। जिन्होंने घोषणा की थीं कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है।

• वाराहमिहिर ने लघुजातक, पंचसिद्धांत बृहञ्जाक तथा वृहत् संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की थीं। नक्षत्र विद्या, वनस्पतिशास्त्र, प्राकृतिक इतिहास और भौतिक भूगोल के विषयों पर चर्चा वाराहमिहिर की बृहत् संहिता में की गई है।

• इस युग के महान नक्षत्र वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त थे। उन्होंने न्यूटन के सिद्धांत की पहले ही घोषणा करके कल्पना कर ली थीं कि प्रकृति के नियम के अनुसार सभी वस्तुओं को पृथ्वी अपनी और आकर्षित करती हैं इस कारण सभी वस्तुएँ पृथ्वी पर गिरती हैं। 

• पशु-चिकित्सा पर हस्त्यायुर्वेद को पलकाण्व ने गुप्त काल में ही लिखा था। 

• गुप्तकाल में नवनीतकम् की रचना की गई थीं। इस पुस्तक में नुस्खे, सूत्र और उपचार की विधियों की जानकारी दी गई थीं।

• गुप्तकाल में पुराणों की वर्तमान रूप में रचना हुई थीं। पुराणों से ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख प्राप्त होता है।

• गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा संस्कृत थी।

• चाँदी के सिक्कों को गुप्तकाल में रूप्यका कहा जाता था।

• गुप्तकाल में बृहस्पति, कात्यायन, नारद और याज्ञवल्क्य स्मृतियों की रचना हुई थीं।

• गुप्तकाल में ही मंदिर बनाने की कला का विकास हुआ। गुप्तकाल में ही त्रिमूर्ति की अवधारणा का विकास भी हुआ हैं। मंदिरों एवं ब्राह्मणों को गुप्तवंश के शासको ने सबसे अधिक ग्राम अनुदान में दिया था।

• लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए स्मरणीय गुप्तकाल है। इसी काल के भास के तेरह नाटक हैं। शुद्रक का लिखा नाटक मृच्छकटिकम् या माटी की खिलौनागाड़ी जिसमें निर्धन ब्राह्मण के साथ वेश्या का प्रेम वर्णित है, प्राचीन नाटकों में सर्वोकृष्ट माना जाता है।

• विशाखदत्त की संस्कृत नाटक देवीचन्द्रगुप्तम् है। इसमें देव राजा रामगुप्त की कहानी है जो एक शक आक्रमणकारी को अपनी रानी ध्रुवदेवी को सौंपने का फैसला करता है, लेकिन चन्द्रगुप्त उसका छोटा भाई दुश्मन के शिविर में रानी के वेष में प्रवेश करता है और दुश्मन को मार देता हैं।

• कालिदास की कृति अभिज्ञानशाकुंतलम् (राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रेम की कथा) द्वितीय भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में हुआ। ऐसी प्रथम रचना है भगवद्गीता ।

• गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग  सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण कहा जाता है।

• नगरों का क्रमिक पतन गुप्तकाल की महत्वपूर्ण विशेषता थी।

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