चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारें में महत्वपूर्ण रोचक कहानी
चन्द्रगुप्त द्वितीय का जीवन परिचय
• आज हम चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारें में महत्वपूर्ण रोचक कहानी पर बात की जाए तों समुद्रगुप्त के बाद गुप्त वंश का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त द्वितीय बना , जो लगभग 380 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल 375 ईस्वी से लेकर 415 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसके शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान 399 ईस्वी में भारत आया था। यह लगभग 399 ईस्वी से 412 ईस्वी तक भारत में रहा था। इसको चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से जाना था। यह गुप्त वंश का सबसे शक्तिशाली और महानतम सम्राट था।
• इसके पिता का नाम समुद्रगुप्त था। तथा इसकी माता का नाम दत्त देवी था। इसने दो शादियाँ की थीं, इसकी एक पत्नी का नाम ध्रुवदेवी और दूसरी पत्नी का नाम कुबेरनाग नागकुलसंभूता था। और इसके पुत्रों का नाम कुमारगुप्त और गोविन्द गुप्त था। तथा पुत्री का नाम प्रभावतीगुप्त था।
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• इसका शासनकाल को गुप्तकाल में साहित्य और कला का स्वर्ण-युग कहा जाता है।
• इसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थीं। विक्रमादित्य की उपाधि उज्जैन के शासक ने इससे पहले लगभग 57 ईस्वी पूर्व में पश्चिमी भारत में शक क्षत्रपों पर विजय पाने के उपलक्ष में धारण की थी।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के सिक्के
• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने चाँदी के सिक्के शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चलाए थे।
• इसका चित्र घोड़े पर विराजमान और हाथ में धनुष धारण किया हुआ, आठ ग्राम सोने की मुद्रा पर छपा हैं। इस सिक्के पर चन्द्रगुप्त का चित्र ऊपरी-बाएँ सिरे पर अंकित हैं।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार के नवरत्न
• इसका शासक दरबारी राजकवि शाब था। इसके शासनकाल में विद्या के प्रमुख केन्द्र पाटलिपुत्र और उज्जयिनी थे।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में अनुश्रुति के अनुसार नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया है। इसके दरबार में नवरत्नों में एक अग्रगण्य महाकवि कालिदास थे। कालिदास के अलावा इसके दरबार में नवरत्न वेतालभट्ट, धन्वंतरि, घटकर्पर, शंकु ( वास्तुकार ), क्षपणक (फलित ज्योतिष के विद्वान), वाराहमिहिर (खगोल विज्ञानी), वररूचि और अमरसिंह (कोशकार) जैसे विद्वान थे।
• वीरसेन शैव मतावलंबी चन्द्रगुप्त द्वितीय का सान्धिविग्रहिक सचिव था। उदयगिरि पहाड़ी पर एक गुफा का निर्माण शिव की पूजा के लिए वीरसेन ने करवाया था। वीरसेन एक कवि, न्यायमीमांसा, व्याकरण और शब्द का प्रकाण्ड पंडित भी था।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का विस्तार
• इसने आक्रामक विस्तार की नीति और लाभदायक पारिग्रहण की नीति का अनुसरण करके सफलता प्राप्त की थीं। इसने अपने वैवाहिक सम्बन्ध शक्तिशाली एवं ऐश्वर्योन्मुखी राजपरिवारों से स्थापित किए थे। इसका साम्राज्य पूर्व में बंगाल से लेकर उत्तर में बल्ख तथा उत्तर-पश्चिम में अरब सागर तक के समस्त प्रदेश सम्मिलित थे।
• उज्जयिनी विजय के बाद ही कभी मालव संवत् विक्रमादित्य के नाम से संबद्ध होकर ‘ विक्रम संवत्’ नाम से अभिहित होने लगा होगा। ऐसा माना जाता हैं कि यह संवत् 58 ई.पू. से ही आरम्भ हो गया था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारें में महत्वपूर्ण रोचक कहानी
• सौराष्ट्र के शक क्षत्रपों के विरुद्ध इसका सर्वप्रथम सैनिक अभियान हुआ। इसने शक रुद्रसिंह तृतीय के विरुद्ध युद्धसंचालन तथा विजयोपरांत सौराष्ट्र के शासन को यहीं से व्यवस्थित किया था। इसके सेनाध्यक्ष आम्रकार्दव थे।
• विद्वानों का मत हैं कि दिल्ली के लौह स्तम्भ पर चन्द्र शब्द अंकित हैं वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को ही इंगित करता हैं।
• इसने गुप्त संवत् का प्रारम्भ किया था। इसको ” देवराज ” और ” प्रवरसेन ” साँची के अभिलेख में कहा गया हैं। उज्जयिनी कक इसने अपनी दूसरी राजधानी बनाया था। इसकी पहली राजधानी पाटलिपुत्र थीं। किंतु परवर्ती कुंतलनरेशों के अभिलेखों में उसे पाटलिपुरवराधीश्वर एवं उज्जयिनीपुरवराधीश्वर दोनों कहा है।
• इसके शासनकाल में ही चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान भारत आया था। फाह्यान इसके शासनकाल में भारत में 6 वर्ष तक रहा था। इसके शासनकाल में ही साहित्य, कला और स्थापत्य का अभूतपूर्व विकास हुआ था। इसी के समय में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
• इसकी उपाधियों का उल्लेख विभिन्न अभिलेखों और मुद्रालेखों में किया गया हैं। इसकी उपाधियाँ निम्नलिखित हैं।
महाराजाधिराज, श्रीविक्रम, नरेन्द्रचन्द्र, परमभागवत, विक्रमांक, नरेन्द्रसिंह और विक्रमादित्य
• शासकीय विभागों के अध्यक्षों में मुख्य चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल के अध्यक्ष निम्न हैं।
कुमारामात्याधिकरण, बलाधिकरण, रणभांडाधिकरण, दंडपाशाधिकरण, विनयशूर, महाप्रतीहार, तलवर, महादंडनायक, विनयस्थितिस्थापक, भटाश्वपति, उपरिक
• प्रान्त इसके शासन कि सबसे बड़ी इकाई थीं। और उपरिक प्रांतों के मुख्य अधिकारी को कहा जाता था।तीरभुक्ति-उपरिक-अधिकरण के राज्यपाल महाराज गोविंदगुप्त थे। उनकी राजधानी वैशाली थी। शासन की प्रांतीय इकाई देश या भुक्ति कहलाती थी। प्रांतों का विभाजन अनेक प्रदेशों या विषयों में हुआ था। वैशाली के सर्वोच्च शासकीय अधिकारी का विभाग वैशाली-अधिष्ठान-अधिकरण कहलाता था। नगरों एवं ग्रामों के शासन के लिए अलग परिषद् होती थी। ग्राम शासन के लिये ग्रामिक, महत्तर एवं भोजक उत्तरदायी होते थे।
• इसके बाद गुप्त वंश के उत्तराधिकारी के रूप में इसका पुत्र कुमारगुप्त गुप्त वंश का शासक बना।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से सम्बंधित कुछ प्रश्न
प्रश्न : चन्द्रगुप्त द्वितीय अन्य किस – किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर : चन्द्रगुप्त द्वितीय को देवगुप्त, देवश्री, देवराज के नाम से भी जाना जाता हैं।
प्रश्न : चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कौन-कौन सी उपाधि धारण की थी?
उत्तर : चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य, विक्रमांक और परमभागवत की उपाधि धारण की थीं।
प्रश्न : चन्द्रगुप्त द्वितीय की विजयों का उल्लेख उसके किस लेख में मिलता है?
उत्तर : चन्द्रगुप्त द्वितीय की विजयों का उल्लेख उदयगिरी गुहालेख से मिलता हैं।
प्रश्न : चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल कौन से धर्म का चरमोत्कर्ष काल था?
उत्तर : चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल ब्राह्मण धर्म का चरमोत्कर्ष काल का था।
प्रश्न : चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से सबसे अग्रगण्य कौन था?
उत्तर : चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में सबसे महान कालिदास था।