चालुक्य वंश के इतिहास से सम्बंधित महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख

चालुक्य वंश

चालुक्य वंश 

• आज हम इस लेख में चालुक्य वंश के इतिहास कि महत्वपूर्ण घटनाओं के बारें में कुछ विशेष तथ्यों पर चर्चा करेंगे। चालुक्य वंश लगभग 543 ईस्वी से लगभग 757 ईस्वी तक चला था। 

चालुक्य वंश

चालुक्य वंश के इतिहास से सम्बंधित महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख

कल्याणी का चालुक्य वंश 

• तैलप द्वितीय ने कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना की थीं। कल्याणी के चालुक्य वंश की राजधानी मान्यखेट थीं।

कल्याणी के चालुक्य वंश के प्रमुख शासक निम्नानुसार हैं। 

  1. तैलप प्रथम       
  2. तैलप द्वितीय        
  3. विक्रमादित्य             
  4. जयसिंह            
  5. सोमेश्वर               
  6. सोमेश्वर द्वितीय विक्रमादित्य-VI       
  7. सोमेश्वर तृतीय       
  8. तैलप तृतीय।

• कल्याणी के चालुक्य वंश के शासक सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेट से राजधानी हटाकर कर्नाटक को बनाया था। विक्रमादित्य VI इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। 

• विक्रमादित्य VI के दरबार में विज्ञानेश्वर और विल्हण रहते थे।

• महान विधिवेता विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरा नामक ग्रन्थ की रचना की थीं। इन्होंने याज्ञवल्क्य स्मृति और हिन्दू विधि ग्रन्थ पर व्याख्या की थीं।

• विल्हण ने विक्रमांकदेवचरित नामक ग्रन्थ की रचना विल्हण ने की थी। इसने इस ग्रन्थ में विक्रमादित्य VI के जीवन का उल्लेख किया गया हैं। 

चोल वंश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं के विषय में जानने के लिए यहाँ पर click करे।

पाल वंश के इतिहास से सम्बंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के विषय में जानने के लिए यहाँ पर click करे। 

वातापी या बदामी का चालुक्य वंश 

• वातापी या बदामी के चालुक्य वंश की स्थापना जयसिंह ने की थीं। वातापी या बदामी में चालुक्य वंश की राजधानी वातापी थीं, जो बीजापुर के निकट थीं।

• वातापी या बदामी के चालुक्य वंश के प्रमुख शासक निम्नानुसार हैं। 

• वातापी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी और महान राजा पुलकेशिन द्वितीय था। 

• पुलकेशिन प्रथम एक ऐसा पहला शासक था जिसने वातापी के चालुक्यों को सामन्त स्थिति से स्वतंत्र स्थिति में लाया था। इसलिए वातापी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम को भी कहा जाता हैं। इसने वातापी के निकटवर्ती पहाड़ी पर लगभग 543 व 544 ईस्वी में किलेबंदी करके दुर्ग का रुओ दिया था। तथा इसने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा अश्वमेध यज्ञ करके की थीं। 

• कीर्तिवर्मन प्रथम को वातापी का निर्माणकर्ता माना जाता हैं। इसका शासनकाल लगभग 566 ईस्वी से लेकर 597 ईस्वी के मध्य था। 

• कोंकण विजय के उपरांत कीर्तिवर्मन प्रथम ने गोवा का प्रमुख बंदरगाह चालुक्य साम्राज्य के अधीन आ गया।

• रेवती द्वीप के नाम से गोवा प्रसिद्ध था। 

• मंगलेश का शासनकाल लगभग 597 ईस्वी से लेकर 609 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं यह वातापी के चालुक्य वंश का तीसरा शासक था।

• पुलकेशिन द्वितीय ने अग्निष्टोम और बहु सुवर्ण यज्ञ को सम्पन्न करवाया था इसका उल्लेख महाकूट स्तम्भ लेख से मिलता हैं। पुलकेशिन द्वितीय ने जिनेन्द्र का मेगुती मंदिर बनवाया था। 

• पुलकेशिन द्वितीय का शासनकाल लगभग 609 ईस्वी से लेकर 692 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं।

• इसने हर्षवर्द्धन को पुलकेशिन द्वितीय ने परमेश्वर की उपाधि धारण की थीं। इसने ” दक्षिणापथेश्वर ” की उपाधि की धारण की थीं। 

• ईरान के शाह खुशरों द्वितीय के दरबार ने पुलकेशिन पुलकेशिन द्वितीय ने राजदूत भेजा था। चालुक्य वंश के दरबार में शाह खुशरों द्वितीय ने अपना दूत भेजा था। 

• चीनी यात्री ह्वेनसांग लगभग 641 ईस्वी में पुलकेशिन द्वितीय के राज्य में गया था। 

• पुलकेशिन द्वितीय को पल्लव वंश के शासक नरसिंह वर्मन प्रथम ने लगभग 642 ईस्वी में परास्त किया था। और इसकी राजधानी बदामी पर अधिकार कर लिया था। पुलकेशिन द्वितीय इस युद्ध में मारा गया था। ” वातापिकोड ” की उपाधि नरसिंह वर्मन ने इस विजय के बाद धारण की थीं। 

• पुलकेशिन द्वितीय से एहोल अभिलेख का सम्बन्ध हैं। यह अभिलेख रविकीर्ति ने लिखा था। 

• पुलकेशिन द्वितीय को अजन्ता के एक गुहाचित्र में फारसी दूत-मंडल को स्वागत करते को दिखाया गया है।

• पुलकेशिन प्रथम का शासनकाल लगभग 543 ईस्वी से लेकर 566 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं।

• विनयादित्य ने मालवा पर विजय प्राप्त करने के बाद सकलोत्तरपथनाथ की उपाधि धारण की थीं। 

• अरबों ने दक्कन में विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में आक्रमण किया था। विक्रमादित्य के भतीजे ने इस आक्रमण का मुकाबला किया था। विक्रमादित्य द्वितीय ने अवनिजनाश्रय की उपाधि इस अभियान की सफलता पर प्रदान की थीं। 

• विक्रमादित्य द्वितीय की प्रथम पत्नी का नाम लोकमहादेवी था। पट्टदकल में इसकी प्रथम पत्नी ने विरूपाक्ष महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। और इसकी दूसरी पत्नी का नाम त्रैलोक्य देवी था और इसकी दूसरी पत्नी ने त्रैलोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था। 

• वातापी या बदामी के चालुक्य का सबसे अंतिम शासक कीर्ति वर्मन था। इसको परास्त कर दंतिदुर्ग ने राष्ट्रकूट राजवंश की स्थापना की थीं। 

• मंदिरों के शहर के नाम से ” एहोल ” को जाना जाता हैं। 

बेंगी का चालुक्य वंश 

विष्णुवर्धन ने बेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना की थीं। इस वंश की राजधानी बेंगी थीं जो कि आंध्रप्रदेश में थीं। बेंगी के चालुक्य वंश का सबसे महानतम और प्रतापी शासक विजयादित्य तृतीय था, जिसका सेनापति पंडरंग था। 

चालुक्य वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों का उल्लेख 

प्रश्न : विक्रमादित्य VI के दरबार में रहने वाले किस कवि ने उनकी जीवनी लिखी थीं?

उत्तर : विक्रमादित्य VI के दरबार में रहने वाले कवि बिल्हण ने उनकी जीवनी लिखी थीं।

प्रश्न : लाद खान मंदिर किस वंश के शासक के समय बनाया गया था?

उत्तर : लाद खान मंदिर चालुक्य वंश के शासक के समय में बनाया गया था। यह मंदिर कर्नाटक के ऐहोल में स्थित हैं।

प्रश्न : मेगुती का जैन मंदिर किसने बनवाया था?

उत्तर : मेगुती का जैन मंदिर पुलकेशिन द्वितीय ने बनवाया था।

प्रश्न : हर्षवर्धन ने दक्कन पर चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण किया तब हर्षवर्धन को किसने हराया था?

उत्तर : पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को नर्मदा नदी के तट पर 618 -619 ईस्वी में पराजित किया था।

प्रश्न : किस वंश के शासक के दरबार में रविकीर्ति रहते थे?

उत्तर : चालुक्य वंश के शासक पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में रविकीर्ति रहते थे। रविकीर्ति द्वारा प्रसिद्ध ऐहोल शिलालेख की रचना की गयी थीं, जो शास्त्रीय संस्कृत भाषा में लिखा गया था।

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