चोल वंश
चोल वंश की उत्पत्ति एवं विकास
• आज हम इस लेख में चोल वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण राज को खोलेंगे और इससे सम्बंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के बारें में जानेंगे। कि pपल्लव वंश के पतन के बाद चोल वंश 9वीं शताब्दी में स्थापित हुआ। इस वंश का वास्तविक संस्थापक विजयालय था। विजयालय का शासनकाल लगभग 850 ईस्वी ने 87 ईस्वी के मध्य था। इसकी राजधानी तांजाया ( वर्तमान तंजौर या तंजावूर थीं। कुंजरमल्लन राजराज पेरूधच्चन तंजावूर का वास्तुकार था।
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• ” नरकेसरी ” की उपाधि विजयालय ने धारण की थीं। इसी ने निशुम्भसूदिनी देवी का मंदिर बनवाया था। आदित्य प्रथम ने चोलों का स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था। पल्लवों से विजय प्राप्त करने के बाद आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की थीं।
• परातंक 1st को तक्कोलम के युद्ध में राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने पराजित किया था। परातंक 1st का बड़ा लड़का राजादित्य इस युद्ध में मारा गया था।
• श्रीलंका पर राजराज प्रथम ने आक्रमण किया था। तब श्रीलंका के राजा महिम -V को भागकर श्रीलंका के दक्षिण में स्थित रोहण जिले में शरण लेनी पड़ी थीं।
• श्रीलंका के विजित प्रदेशों को राजराज प्रथम ने चोल वंश का एक नया प्रान्त मुम्डिचोलमंडलम बनाया था। जिसकी राजधानी पोलन्नरुवा को बनाया था।
• तंजौर में राजराज प्रथम ने राजराजेश्वर का शिव मंदिर बनवाया था। तथा यह शैव धर्म का मतानुयायी था। राजेंद्र प्रथम के गुरु का नाम शैव सन्त इसानशिव पंडित था।
• शैलेन्द्र शासक को राजराज प्रथम ने नागपट्टनम् में बौद्ध मठ स्थापित करने की अनुमति दी थी।
• राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में चोल वंश का सर्वाधिक विस्तार हुआ था। राजेंद्र प्रथम ने बंगाल के पाल शासक महिपाल को हराने के बाद गंगैकोडचोल की उपाधि धारण की थीं। इसने अपनी नयी राजधानी गंगैकोड चोलपुरम् को बनाया था। तथा इसके समीप एक विशाल तालाब चोलगंगम का निर्माण करवाया था।
• राजेंद्र प्रथम के समकालीन गजनी का सुल्तान महमूद था।
चोल काल में भूमि के प्रकार
- वेल्लनवगाई :- गैर ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि।
- ब्रह्मदेय :- ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमि।
- शालाभोग :- किसी विद्यालय के रख-रखाव की भूमि ।
- देवदान या तिरुनमटङ्ककनी :- मंदिर को उपहार में दी गई भूमि।
- पल्लिच्चंदम :- जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि।
चोल वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण राज
• ” प्रकेसरी ” की उपाधि राजेंद्र द्वितीय ने और ” राजकेसरी ” की उपाधि वीर राजेंद्र ने धारण की थीं। राजेंद्र तृतीय चोल साम्राज्य का अंतिम शासक था।
• गोवा के कदम्ब शासक जयकेस प्रथम ने पश्चिमी चालुक्य और चोलों के बीच शांति स्थापित करने में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थीं।
• अभाव एवं अकाल ग्रस्त जनता से विक्रम चोल ने राजस्व वसूल करके चिदंबरम् मंदिर का विस्तार करवाया था।
• चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंदराज अर्थात् भगवान विष्णु की मूर्ति को कलोतुंग द्वितीय ने समुद्र में फेंकवा दिया था। वैष्णव आचार्य रामानुजाचार्य ने कालान्तर में मूर्ति का पुनरुद्धार किया था। और उस मूर्ति को तिरुपति के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया था।
• ” पेरुन्दरम् ” चोल प्रशासन में भाग लेने वाले उच्च पदाधिकारियों को तथा ” शेरुन्दरन ” निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों को कहा जाता था। ” उडनकूटम् ” लेखों में कुछ उच्चाधिकारियों को भी कहा गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है-सदा राजा के पास रहने वाला अधिकारी।
• सम्पूर्ण चोल वंश 6 मंडलमों अर्थात् प्रांतों में बँटा हुआ था। मंडलम् को कोट्टम् में विभाजित किया गया था और कोट्टम् को नाडु में विभाजित किया गया था तथा नाडु को कई कुर्रमों में विभाजित किया गया था।
• नगर की स्थानीय सभा को ” नगरतार ” और नाडु की स्थानीय सभा को ” नाटूर ” कहा जाता था।
• बेल्लाल जाति के धनी किसानों को केन्द्रीय सरकार की देख-रेख में नाडु के काम-काज में अच्छा-खासा नियंत्रण हासिल था। उनमें से कई धनी भू-स्वामियों को चोल राजाओं के सम्मान के रूप में मुवेदवेलन (तीन राजाओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करने वाला वेलन या किसान) अरड्यार (प्रधान) जैसी उपाधियाँ दी उन्हें केन्द्र में महत्त्वपूर्ण राजकीय पद सौंपे।
• चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता स्थानीय स्वशासन थी।
• सर्वसाधारण लोगों की समिति उर थी, जिसका कार्य सार्वजनिक कल्याण के लिए बगीचों और तालाबों के निर्माण के लिए गाँव की भूमि का अधिग्रहण करना।
• सभा या महासभा – बस्तियों की सभा ब्राह्मण और अग्रहारों थीं, जिसके सदस्यों को पेरुमक्कल कहा जाता था। वरियम नाम की समितियों के द्वारा यह सभा अपने कार्य को संचालित करती थी। सभा की बैठक को गाँव के मंदिर के समीप वृक्ष के नीचे या तालाब के किनारे आयोजित किया जाता था। तथा ” नगरम ” व्यापारियों की सभा को कहा जाता था।
• इस काल में भूमिकर उपज का 1/3 भाग हुआ करता था। कार्यसमिति की सदस्यता के लिए गाँव में जो वेतनभोगी कर्मचारी रखे जाते थे, उन्हें मध्यस्थ कहा जाता था।
• सभा की सदस्यता उत्तरमेरुर अभिलेख के अनुसार
- सभा की सदस्यता के लिए इच्छुक लोगों को ऐसी भूमि का स्वामी होना चाहिए, जहाँ से भू-राजस्व वसूला जाता है।
- उनके पास अपना घर होना चाहिए।
- उनकी उम्र 35 से 70 के बीच होनी चाहिए।
- उन्हें वेदों का ज्ञान होना चाहिए।
- उन्हें प्रशासनिक मामलों की अच्छी जानकारी होनी चाहिए और ईमानदार होना चाहिए।
- यदि कोई पिछले तीन सालों में किसी समिति का सदस्य रहा है तो वह किसी और समिति का सदस्य नहीं बन सकता।
- जिसने अपने या अपने संबंधियों के खाते जमा नहीं कराए हैं, वह चुनाव नहीं लड़ सकता ।
• ” चतुर्वेदि मंगलम् ” ब्राह्मणों को करमुक्त दी गयी भूमि को तथा ” ब्रह्मदेय ” उनको दान दी गयी भूमि को कहा जाता था।
चोल काल के सिक्के
• चोल सेना का सबसे संगठित अंग ” पदाति सेना ” था। कंलजु सोने के सिक्के चोल काल में सबसे ज्यादा प्रचलित थे।
• जयन्गोंदर कुलोतुंग प्रथम का राजकवि था, जो तमिल कवियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि था। तथा इसकी रचना का नाम कलिंगतुपर्णि हैं।
• तमिल साहित्य का त्रिरल कंबन, ओट्टक्कुट्टन और पुगलेंदि को तथा कन्नड़ साहित्य का त्रिरल पंप, पोन्न एवं रन्न को कहा जाता है।
• तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के विमान को पर्सी ब्राऊन ने भारतीय वास्तुकला का निष्कर्ष माना है। चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ चोलकालीन नटराज प्रतिमा को कहा जाता है।
• चोल साम्राज्य की कांस्य की प्रतिमाएँ संसार की सबसे उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाओं में गिनी जाती हैं।
• चोल साम्राज्य में कावेरीपट्टनम 10वीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह था।
• एक इकाई के रूप में बहुत बड़ा गाँव शासित किया जाता था, जिसे तनियर कहा जाता था।
• परातंक प्रथम के शासनकाल से उत्तरमेरूर शिलालेख संबंधित था, जो सभा-संस्था का विस्तृत वर्णन उपस्थित करता है।
• कालक्रम के अनुसार चोलों की राजधानी निम्नलिखित थीं। उरेयूर, तंजौर, गंगैकोंड, चोलपुरम, और काँची।
• बगान समिति चोल काल में सड़कों की देखभाल करती थी।
• चोल काल में ” धान ” को आम वस्तुओं के आदान-प्रदान का आधार माना जाता था।
• चोल काल के विशाल व्यापारी समूह निम्न थे- वलंजियार, नानादेसी एवं मनिग्रामम् ।
• ” अलवार ” विष्णु के उपासक को तथा ” नयनार ” शिव के उपासक को कहा जाता था।
चोल वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न : किस चोल शासक ने नर्ततामालाई, पुदुक्कोट्टई के सोलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था?
उत्तर : विजयालय चोल ने नर्ततामालाई, पुदुक्कोट्टई के सोलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
प्रश्न : चिदंबरम मंदिर के शिव पर किसने तमिल भजन लिखा था?
उत्तर : चिदंबरम मंदिर के शिव पर अरिंजय चोल ने तमिल भजन लिखा था।
प्रश्न : तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर जो सबसे बड़ा हिंदू मंदिरों में से एक है इसका निर्माण किसने करवाया था?
उत्तर : तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण राजराज चोल ने करवाया था, जो सबसे बड़ा हिन्दू मंदिरों में से एक हैं।
प्रश्न : किस राजा के शासनकाल के दौरान बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण विरोसोलियम की रचना की थी?
उत्तर : राजेंद्र चोल के शासनकाल के दौरान बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण विरोसोलियम की रचना की थी।