जैन धर्म
परिभाषा
• भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से जैन धर्म एक है। ‘जैन धर्म’ काशाब्दिक अर्थ है – ‘जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म’। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करने वाला ” जिन भगवान ” के अनुयायी। अर्थात् जिन्होंने अपने शरीर ( काया ), अपने मन व और अपनी वाणी पर विजय प्राप्त कर ली हो। और सम्पूर्ण तथा विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त कर लिया हो उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या ‘जिन’ कहा जाता है’। जैन धर्म अर्थात ‘जिन’ भगवान् का धर्म।
• जैन धर्म के के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर, राजगृह, पावापुरी, श्रवण बेलगोला आदि हैं।
• जैन धर्म के प्रमुख त्योहार पर्युषण पर्व या दशलाक्षणी और श्रुत पंचमी हैं।
• जैन धर्म का चरम लक्ष्य मोक्ष हैं।
• जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास ” कल्पसूत्र ” से ज्ञात होता हैं। जैन साहित्य को आगम कहा जाता हैं
• जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव आदिनाथ को माना जाता हैं उन्होंने जैन धर्म स्थापना की। ऋषभदेव आदिनाथ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे।
• जैन धर्म के भगवती सूत्र में महावीर के जीवन – कृत्यों एवं समकालिकों के साथ उनके संबंधों का संकलन मिलता हैं।
• जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए। जिनमें से महावीर स्वामी को अत्यधिक महत्व दिया गया हैं। यह जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर माने जाने हैं।
• जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव को और महावीर स्वामी को वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं।
• जैन धर्म में कर्मों के फल से छुटकारा पाने के लिए त्रिरत्न बताए गए हैं। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण या चरित्र।
• जैन धर्म अनीश्वरवादी हैं।
• जैन धर्म में आत्मा की मान्यता हैं ईश्वर की नहीं।
जैन धर्म के 24 तीर्थंकर एवं उनके जन्मस्थान और चिह्न
तीर्थंकर | जन्म स्थान | चिह्न | |
1. | श्री ऋषभदेव जी | अयोध्या | सांड |
2. | श्री अजीतनाथ जी | अयोध्या | हाथी |
3. | श्री संभवनाथ जी | श्रावस्ती | घोड़ा |
4. | श्री अभिनन्दन जी | अयोध्या | बंदर |
5. | श्री सुमतिनाथ जी | अयोध्या | चकवा पक्षी |
6. | श्री पद्मप्रभु जी | कौसाम्बी | कमल |
7. | श्री सुपार्श्वनाथ जी | वाराणसी | स्वस्तिक |
8. | श्री चंद्राप्रभु जी | चन्द्रपुरी | चन्द्रमा |
9. | श्री सुविधिनाथ जी | काकंदिपुर | मगरमच्छ |
10. | श्री शीतलनाथ जी | भद्रिलपुर | कल्प वृक्ष |
11. | श्री श्रेयांसनाथ जी | सिंहपुर | गेंडा |
12. | श्री वासपुज्य जी | चम्पापुर | भैंसा |
13. | श्री विमलनाथ जी | कम्पिला | सूकर |
14. | श्री अनन्तनाथ जी | अयोध्या | सेही |
15. | श्री धर्मनाथ जी | रत्नपुर | वज्र |
16 | श्री शांतिनाथ जी | हस्तिनापुर | हिरण |
17. | श्री कुंथुनाथ जी | हस्तिनापुर | बकरा |
18. | श्री अरनाथ जी | हस्तिनापुर | मछली |
19. | श्री मल्लिनाथ जी | मिथिलापुरी | कलश |
20. | श्री मुनिस्रुव्रत जी | राजगृह | कछुआ |
21. | श्री नमिनाथ जी | मिथिलापुरी | नीलकमल |
22. | श्री अरिष्टोनेमी जी | सौरिपुर | शंख |
23. | श्री पार्श्व नाथ जी | वाराणसी | सर्प |
24. | श्री महावीर स्वामी | कुण्डग्राम | सिंह |
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ
• पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकू वंश के राजा के अग्रसेन के पुत्र थे। इनको 30 साल की उम्र में वैराग्य प्राप्त हुआ, जिस कारण वह घर त्याग कर संन्यासी बन गए।
24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी
• महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व ज्ञातृक क्षत्रिय कुल में वैशाली के पास कुण्डग्राम में चैत्र शुक्ल की तेरस को हुआ था। इनके बचपन का नाम वर्द्धमान, पिता का नाम राजा सिद्धार्थ थे, जो ज्ञातृक कुल के सरदार थे और उनकी माता त्रिशला लिच्छवी नरेश चेटक की बहन थी। इनकी पत्नी का नाम यशोदा कुण्डीन्य गौत्र की कन्या और पुत्री प्रियदर्शिनी थी।
• महावीर स्वामी ने गृहत्याग 30 वर्ष की उम्र में किया था।
• महावीर स्वामी को 42 वर्ष की अवस्था में ऋजुपालिका नदी के किनारे जृम्भिक नामक ग्राम में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
• कर्मवाद और पुनर्जन्म में महावीर स्वामी विश्वास रखते थे।
• महावीर स्वामी ने अपना उपदेश मगध नरेश बिम्बिसार के शासनकाल में प्राकृत ( अर्धमागधी ) भाषा में दिया था।
• महावीर स्वामी के प्रथम अनुयायी ( शिष्य ) उनके दामाद जमाली थे।
• उनकी मृत्यु ( महापरिनिर्वाण ) 72 वर्ष की आयु में 468 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी में हुई थी।
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जैनधर्म के सिद्धान्त
• महावीर स्वामी ने पाँच महाव्रतों के पालन का उपदेश दिया हैं – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य। इन महाव्रतों में से चार 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के थे। और ब्रह्मचर्य महाव्रत महावीर स्वामी द्वारा जोड़ा गया था।
अहिंसा
• भगवान महावीर ने जीवन का पहला मूलभूत सिद्धांत ‘अहिंसा परमो धर्म’ माना हैं । अहिंसा का अर्थ यानि हिंसा का भाव नहीं करना हैं। अहिंसा में ही समस्त जीवन का सार समाया हुआ है ; इसे हम अपनी सामान्य दिनचर्या में तीन आवश्यक नीतियों (1) कायिक अहिंसा (कष्ट न देना) ,(2) मानसिक अहिंसा (अनिष्ट नहीं सोचना) , (3) बोद्धिक अहिंसा (घृणा न करना) का पालन कर समन्वित कर सकते हैं।
सत्य
• झूठ न बोलना अर्थात् सदा सत्य बोलना ही उचित हैं। तथा विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य पर अडिग रहना। अनुचित और उचित में से उचित का चयन करना तथा क्षणभंगुर और शाश्वत में से शाश्वत का चयन करना।
अचौर्य ( अस्तेय )
• बिना पूछे दूसरे की वस्तु अर्थात् परायी वस्तु या ज्ञान को लेना या चुराना आपके आत्म सम्मान के लिए सही नहीं हैं। यह पाप हैं। भगवान महावीर के चेतना के उन्नत शिखर से दिए गए ‘ अचौर्य महाव्रत ‘ को हम संसारी जीव अपनी सामान्य बुद्धि द्वारा पूर्णतया समझ नहीं पाते।
ब्रह्मचर्य
• जब मनुष्य उचित और अनुचित में से उचित का चयन करता है एवं अनित्य शरीर-मन-बुद्धि से ऊपर उठकर अपनी पत्नी के अतिरिक्त सभी स्त्रियों को माँ और बहन मानता है तो वह अपनी आनंद रुपी स्व सत्ता के केंद्र बिंदु पर लौटता है जिसे ‘ ब्रह्मचर्य ‘ कहा जाता है।
अपरिग्रह
• जीवन की हर अवस्था में अपरिग्रह ( आवश्यकता से अधिक धन, सम्पत्ति नहीं जोड़ना ) का भाव दृष्टिगोचर होता हैं। जब मनुष्य स्वार्थी न होकर जीवन यापन करता हैं तो उसकी बाह्य दिनचर्या संयमित दिखती हैं
जैन महासंगीतियाँ
संगीति | समय | स्थल | अध्यक्ष | कार्य |
प्रथम | 322 ई.पू.- 298 ई. पू. | पाटलिपुत्र | स्थूल भद्र | जैन धर्म को दो भागों दिगम्बर और श्वेताम्बर में विभाजित। |
द्वितीय | 512 ईस्वी | वल्लभी | देव ऋद्धिगणि ( क्षमाश्रमण ) | धर्मग्रन्थों को लिपिद्ध किया गया। |
जैन धर्म की शाखाएं
जैन धर्म को दो भागों में बाँटा गया था।
- दिगम्बर
2. श्वेताम्बर
• दिगम्बर
• भद्रबाहु के शिष्य को दिगम्बर कहा जाता हैं दिगम्बर साधु वस्त्र नहीं पहनते है अर्थात् निर्वस्त्र रहते हैं और महिलाएँ श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। दिगम्बर में तीर्थकरों की प्रतिमा पूर्ण नग्न बनायी जाती हैं और उनका श्रृंगार नहीं किया है। दिगंबर समुदाय दो भागों विभक्त किया गया हैं।
तारणपंथ
परवार
• श्वेताम्बर:-
• श्वेताम्बर साधु श्वेत वस्त्र पहनते हैं और महिलाएँ और संन्यासी भी सफेद वस्त्र पहनते हैं। तीर्थकरों की प्रतिमा पर धातु की आंख, कुंडल सहित बनायी जाती हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है।
श्वेताम्बर भी दो भाग मे विभक्त है:
• देरावासी –
ये तीर्थकरों की प्रतिमा की पूजा करते हैं।
• स्थानकवासी –
ये तीर्थंकर साधु संतों की पूजा करते थे बल्कि प्रतिमा की नहीं।
स्थानकवासी के भी दो भाग हैं:-
बाईस पंथी
तेरा पंथी