पल्लव वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण राज

पल्लव वंश

पल्लव वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण राज

• आज हम इस लेख में पल्लव वंश के इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण राज के बारें में जानने का प्रयास करेंगे कि चौथी शताब्दी में पल्लव वंश दक्षिण भारत में स्थित काँचीपुरम राज्य में स्थित था।

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• पल्लव का शाब्दिक अर्थ हैं ” लता “। लता तमिल शब्द ” टोंडाई का रूपान्तरण रूप हैं। इसलिए पल्लव वंश को लताओं के प्रदेश का निवासी कहा जाता हैं।

पल्लव वंश का सम्पूर्ण इतिहास

• इस वंश ने तमिल और तेलगू क्षेत्र पर लगभग 600 वर्ष तक शासन किया था।

• इस राजवंश का उदय सातवाहन वंश के बाद हुआ था।

• इस राजवंश से महान भारतीय बौद्ध भिक्षु ” बोधिधर्म ” का सम्बन्ध था जिन्होंने चीन देश में ध्यान योग का प्रचार-प्रसार किया था। तथा इस राजवंश के लोग क्षत्रिय थे। 

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पल्लव वंश के प्रमुख शासक 

पल्लव वंश के शासकों का वर्णन

सिंह विष्णु 

• सिंहविष्णु पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं। इसकी राजधानी काँची अर्थात् वर्तमान तमिलनाडु की काँचीपुरम थीं इसका शासनकाल लगभग 575 ईस्वी से लेकर 600 ईस्वी तक माना जाता हैं। यह वैष्णव धर्म का अनुयायी भी था। तथा यह विष्णु के उपासक भी थे।

• इसने अपने साम्राज्य में श्रीलंका को शामिल कर लिया था। तथा इन्होंने अपने समकालीन तमिल शासक को हराया था। 

• पल्लव वंश में अवनि सिंह की उपाधि सिंहविष्णु ने धारण की थीं। 

• आदि वाराह के मंदिर का निर्माण मामल्लपुरम में सिंह विष्णु ने करवाया था।

• इसके दरबार में लेखक भारवि रहते थे, जिन्होंने किरातार्जुनीयम नामक महाकाव्य की रचयिता की थीं।

महेन्द्र वर्मन प्रथम 

• महेन्द्र वर्मन प्रथम 600 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 600 ईस्वी से लेकर 630 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। 

• पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन ने ” मतविलास प्रहसन ”  और ” विचित्रचिता ” की रचना की थीं।

• यह पहले शुरू में जैन धर्म के अनुयायी थे, परन्तु बाद में इन्होंने तमिल संत अप्पर के प्रभाव में आकर शैव बन गए थे।

• रॉक-कट मंदिर वास्तुकला की शुरुआत महेन्द्र वर्मन प्रथम ने की थीं। इनकी प्रतिद्वंद्विता और लड़ाई चालुक्य वंश के शासक पुलकेशिन द्वितीय के साथ चल रही थीं। महेन्द्र वर्मन की मृत्यु चालुक्यों से युद्ध के समय हो गयी थीं। यह एक कुशल और योग्य शासक था। 

नरसिंह वर्मन प्रथम 

• यह महेन्द्र वर्मन प्रथम के बाद इसके उत्तराधिकारी के रूप में पल्लव वंश का शासक बना। इसका कार्यकाल लगभग 630 ईस्वी से लेकर 668 ईस्वी के बीच में था। 

• एकाश्म मंदिर जिसे रथं कहा गया हैं, इस मंदिर का निर्माण महाबलीपुरम्  में नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा बनवाया गया था। महाबलीपुरम् में रथ मंदिरों की संख्या सात हैं। द्रोपदी रथ मंदिर इन रथ मंदिरों में सबसे छोटा हैं जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता हैं। 

• इसने महामल्ल और वातापीकोण्ड की उपाधि धारण की थीं। इसने पुलकेशिन द्वितीय को 642 ईस्वी में पराजित कर दिया था और उसे मारकर चालुक्य की राजधानी वातापी पर कब्जा कर लिया था। इसके कार्यकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग काँची में आया था। 

• इसने चेर, चोल और पाण्ड्यों को भी पराजित किया था तथा इसने एक नौसैनिक अभियान श्रीलंका भेजा और राजकुमार मणिवर्मा को बहाल किया था। 

• इसने महाबलीपुरम या मामल्लापुरम शहर की स्थापना की थीं जिसका नाम उसके नाम पर रखा गया था।

परमेश्वर वर्मन प्रथम 

• परमेश्वर वर्मन प्रथम 670 ईस्वी में राज गद्दी पर बैठा था। इसका कार्यकाल लगभग 670 ईस्वी से 700 ईस्वी के बीच में था। 

• यह शैव धर्म का अनुयायी था। इसने बहुत सारी उपाधियाँ धारण की थीं जैसे – गुणभजन, एकमल्ल, अत्यन्तकाम, लोकादित्य, उग्रदण्ड, रणंजय। इसने गणेश मंदिर का निर्माण मामल्लपुरम में करवाया था। 

• यह विद्याप्रेमी था, इसने विद्याविनीत की उपाधि भी धारण की थीं।

नरसिंह वर्मन द्वितीय 

• परमेश्वर वर्मन प्रथम के बाद इसके उत्तराधिकारी के रूप में 700 ईस्वी में यह राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 700 ईस्वी से 728 ईस्वी के मध्य मान जाता हैं। 

• इसने कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण काँची में करवाया था। जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत इसी मंदिर के निर्माण से हुई हैं। शोर मंदिर का निर्माण भी इसी ने महाबलीपुरम् में करवाया था। 

• पल्लव राजाओं और रानियों की आकस्मिक तस्वीरें काँची के कैलाशनाथ मंदिर में लगी हैं। 

• यह अरबों के आक्रमण के समय पल्लवों का शासक था। 

 • इसने ” आगमप्रिय ” ( शास्त्रों का प्रेमी ), ” शंकरभक्त ” ( शिव के उपासक ) और ” राजासिंह ” ( राजाओं में सिंह ) की उपाधियाँ धारण की थीं। 

• नरसिंह वर्मन द्वितीय के दरबार में दण्डी नामक लेखक रहते थे। जिन्होंने दशकुमारचरित की रचयिता की थीं। 

नंदिवर्मन द्वितीय 

• नंदि वर्मन द्वितीय, नरसिंह वर्मन द्वितीय का पुत्र था। यह इसके उत्तराधिकारी के रूप में 730 ईस्वी में राज गद्दी पर बैठा था। इसका कार्यकाल लगभग 730 ईस्वी से 795 ईस्वी तक था। यह शैव धर्म का अनुयायी था। भारतवेणवा नामक ग्रन्थ की रचना संत पेरुन्देवनार ने की थीं जो इसकी राज सभा में में निवास करते थे। संत पेरुन्देवनार तमिल भाषा के प्रसिद्ध कवि थे।

अपराजित वर्मन 

• अपराजित वर्मन पल्लव वंश का अंतिम शासक था। इसका शासनकाल लगभग 882 ईस्वी से 897 ईस्वी के मध्य था। यह चोलों के साथ युद्ध में मारा गया था। 

पल्लव वंश से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न : महाबलीपुरम के स्मारक किस राजवंश वास्तुकला में बनाए गए थे?

उत्तर : महाबलीपुरम के स्मारक पल्लव वंश के शासनकाल में बनाए गए थे।

प्रश्न : पल्लव वंश के किस शासक के शासनकाल के दौरान चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पल्लव की राजधानी काँची का दौरा किया था?

उत्तर : चीनी यात्री ह्वेनसांग ने नरसिंह वर्मन प्रथम के शासनकाल के दौरान पल्लव की राजधानी काँची का दौरा किया था।

प्रश्न : चौथी से नौवीं शताब्दी के बीच कांचीपुरम किस राज्य की राजधानी थी?

उत्तर : चौथी से नौवीं शताब्दी के बीच कांचीपुरम पल्लव राज्य की राजधानी थी।

प्रश्न : पल्लव वंश का अंतिम शासक कौन था जो चोलों के साथ युद्ध में मारा गया था?

उत्तर : पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित वर्मन था जो चोलों के साथ युद्ध में मारा गया था।

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