पारसी धर्म
पारसी धर्म की उत्पत्ति एवं विकास
आज हम पारसी धर्म क्या हैं? इससे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य के बारें में रोचक जानकारी को पढ़ेंगे। पारसी धर्म की उत्पत्ति प्राचीन फारस से हुई थीं। इस धर्म की स्थापना फारस में जरथुस्ट्र ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में की थीं हैं। इसलिए जरथुस्ट्र को पारसी धर्म का संस्थापक माना जाता हैं। यह धर्म दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक हैं। द्वैतवादी और एकेश्वरवादी दोनों तत्व इस धर्म में शामिल हैं। जरथुस्ट्र पारसी धर्म के पैगम्बर थे। यह ईरान के रहने वाले थे। इनको लोग जोरोस्टर के नाम से जानते हैं।
पारसी धर्म क्या हैं? इससे संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
पारसी धर्म का प्रमुख ग्रन्थ
पारसियों का प्रमुख पवित्र ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता हैं। इस ग्रन्थ में पैगम्बर जरथुस्ट्र की शिक्षाओं का संकलन मिलता हैं। इस ग्रन्थ में पारसी धर्म की प्रमुख मान्यता पाई गई हैं। यह ग्रन्थ ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। अवेस्ता और ऋग्वेद में बहुत सारे शब्दों की समानता हैं। ईरान को पारस्य देश ऋग्वैदिक काल में कहा जाता हैं। पारसी धर्म का प्रमुख त्योहार नवरोज हैं।
पैगम्बर जरथुस्ट्र की मूल शिक्षा का सूत्र निम्नलिखित हैं।
सद्-विचार, सद्-कार्य तथा सद्-वचन।
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इस धर्म के अनुयायी एक ईश्वर ‘अहुर’ को मानते हैं। ” अग्नि-पूजक ” इस धर्म के अनुयायियों को कहा जाता हैं।
कई विद्वानों का मानना है कि इस धर्म ने ईसाई धर्म , इस्लाम धर्म और यहूदी धर्म की विश्वास प्रणालियों को प्रभावित किया है। भारत में यह धर्म अधिक स्वतंत्र रूप से फलता – फूलता हैं। कई पारसी अनुयायी 10 वीं शताब्दी में भारत में आकर बस गए थे।
जरथुस्ट्र
महात्मा जरथुस्ट्र का जन्म दिवस पारसी समुदय द्वारा 24 अगस्त को मनाया जाता है। इनका जन्म प्राचीन ईरान में हुआ था। ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक जरथुस्ट्र को माना जाता है। वे ईरानी आर्यों के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरुषहस्प के पुत्र थे।
इनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था, जो कुंवारी थी। 30 वर्ष की आयु में ज्ञान की पप्राप्ति हुई थीं। इनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई थीं। महान दार्शनिक नीत्से ने ” दि स्पेक जरथुस्ट्र ” नामक एक किताब लिखी थीं।
पारसी धर्म का प्रतीक चिह्न
पारसी धर्म का प्रतीक चिह्न फ़रवहर हैं। जिसे प्राचीन फ़ारसी में प्रवहर लिखते थे। यह चिह्न पारसी पंथ का सब से अधिक पहचाने जाने वाला है। ईरान पर राज करने वाले पहलवी राजवंश ने बीसवीं सदी में इसे अपने साम्राज्य का और ईरानी राष्ट्र का चिह्न भी चुना था। इस चिह्न में एक परों वाले चक्र के बीच एक राजसी आकृति का दाढ़ी वाला व्यक्ति दर्शाया जाता है।
पारसी धर्म के प्रमुख तीर्थं स्थल
पश्चिमी ईरान के सिस्तान प्रांत की हमुन झील के पास खाजेह पर्वत पर पारसियों का प्रमुख धार्मिक स्थल था। इस धार्मिक स्थल की खोज में यहां से 250 ईसापूर्व बने मंदिर के अवशेष मिले हैं। पारसियों की मूल जन्मभूमि पारस्य देश अर्थात् ईरान था।
भारत में पारसी धर्म के प्रमुख तीर्थं स्थल
क्र.सं. | तीर्थं स्थल | स्थान |
---|---|---|
1. | पवित्र इरानशॉ | दमन, दीव |
2. | उदवाडा अताश बेहराम | उदवाडा |
3. | नवसारी अताश बेहराम | नवसारी |
4. | मोदी अताश बहराम | सूरत |
5. | वकील अताश बहराम | सूरत |
6. | संजान (नगर) | वलसाड |