पाल वंश के इतिहास की सम्पूर्ण घटनाओं का उल्लेख

पाल वंश का सम्पूर्ण इतिहास

पाल वंश 

पाल वंश के इतिहास की सम्पूर्ण घटनाओं का उल्लेख 

• आज हम इस लेख में पाल वंश के इतिहास की सम्पूर्ण घटनाओं का उल्लेख इस प्रकार करेंगे कि पाल वंश मध्यकालीन उत्तर भारत का सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली वंश माना जाता हैं, इस साम्राज्य के शासकों ने लगभग 750 ईस्वी से 1174 ईस्वी तक शासन किया था। एक विशाल साम्राज्य, पाल वंश के शासकों ने भारत के पूर्वी भाग में बनाया था। 

पाल वंश का सम्पूर्ण इतिहास

राष्ट्रकूट राजवंश के इतिहास से सम्बंधित सम्पूर्ण घटनाओं के बारें में जानने के लिए यहाँ पर click करे।

• हर्षवर्धन के शासनकाल के बाद उत्तरी भारत के समस्त क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक में गहरा संकट उत्पन्न हो गया था, तब सम्पूर्ण क्षेत्र जैसे – बंगाल, उड़ीसा और बिहार में पुरी तरह से अराजकता फैल गयी थीं।    

• पाल राजवंश के महत्वपूर्ण शासकों की सूची और उनके शासनकाल 

क्र.सं.शासकशासनकाल
1.गोपाल750 ईस्वी से 770 ईस्वी तक
2.धर्मपाल770 ईस्वी से 810 ईस्वी तक
3.देवपाल810 ईस्वी से 850 ईस्वी तक
4.शूर पाल महेन्द्रपाल850 ईस्वी से 854 ईस्वी तक
5.विग्रह पाल854 ईस्वी से 855 ईस्वी तक
6.नारायण पाल855 ईस्वी से 908 ईस्वी तक
7.राज्यो पाल908 ईस्वी से 940 ईस्वी तक
8.गोपाल द्वितीय940 ईस्वी से 960 ईस्वी तक
9.विग्रह पाल द्वितीय960 ईस्वी से 988 ईस्वी तक
10.महिपाल988 ईस्वी से 1038 ईस्वी तक
11.नय पाल1038 ईस्वी से 1055 ईस्वी तक
12.विग्रह पाल तृतीय1055 ईस्वी से 1070 ईस्वी तक
13.महिपाल द्वितीय1070 ईस्वी से 1075 ईस्वी तक
14.शूर पाल द्वितीय1075 ईस्वी से 1077 ईस्वी तक
15.रामपाल1077 ईस्वी से 1130 ईस्वी तक
16.कुमारपाल1130 ईस्वी से 1140 ईस्वी तक
17.गोपाल तृतीय1140 ईस्वी से 1144 ईस्वी तक
18.मदनपाल1144 ईस्वी से 1162 ईस्वी तक
19.गोविन्द पाल1162 ईस्वी से 1174 ईस्वी तक

पाल वंश के शासकों का वर्णन 

गोपाल 

• पाल वंश की स्थापना गोपाल ने लगभग 750 ईस्वी में की थीं। इसलिए गोपाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता हैं। कहा जाता हैं कि बंगाल, बिहार और उड़ीसा में फैली अराजकता कों दूर करने के लिए कुछ लोगों ने इसको राजा के रूप में चुना था। इसने बौद्ध विहार की स्थापना बिहार के औदन्तपुरी (बिहार शरीफ) में  की थी। इसने पाल वंश पर लगभग 750 ईस्वी से 770 ईस्वी तक शासन किया था।

• इसे बंगाल का पहला बौद्ध सम्राट धर्म परिवर्तन करने के बाद माना गया था।

धर्मपाल 

• गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल पाल वंश के राज सिंहासन पर बैठा था। इसने लगभग 770 ईस्वी से 810 ईस्वी तक शासन किया था। यह इस वंश का दूसरा और सबसे बड़ा सम्राट था। 

• विक्रमशिला विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल ने करवाया था। यह विश्वविद्यालय बिहार राज्य के भागलपुर जिले के अन्तिचक गाँव में स्थित हैं।

• प्रतिहार वंश के नरेश वत्सराज ने कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष की शुरूआत की थी तथा गुर्जर प्रतिहारों की अन्तिम विजय से त्रिपक्षीय संघर्ष का अन्त हुआ था।

• इसने राष्ट्रकूटों और प्रतिहारों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं थीं और कन्नौज पर अपना अधिकार जमा लिया तथा एक भव्य दरबार आयोजित किया था।

• इसने इस समय की सबसे बड़ी शाही उपाधियाँ जैसे – महाराजाधिराज, परमेश्वर और परमभट्टारक धारण की थीं।

• धर्मपाल को प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय से एक बार और कन्नौज के प्रभुत्व के लिए युद्ध करना पड़ा था। इसका उल्लेख ग्वालियर के समीप एक अभिलेख में मिला हैं। इस अभिलेख में नागभट्ट के विजय की चर्चा की गई हैं। जिससे पता चलता हैं कि यह अभिलेख नागभट्ट मृत्यु के 50 वर्षों के बाद लिखा गया हैं। मध्य भारत और मालवा के कुछ हिस्सों पर नागभट्ट द्वितीय ने तुरुष्क तथा सेंधव कों पराजित करके विजय प्राप्त की थीं। जो शायद सिंध में अरब शासक और उसके तुर्की सिपाही थे। 

देवपाल 

• देवपाल धर्मपाल के बाद उसके उत्तराधिकारी के रूप में राज सिंहासन पर बैठा था। इसके शासनकाल में लगभग 810 ईस्वी से लेकर 850 ईस्वी तक था। इसके पिता का नाम धर्मपाल और इसकी माता का नाम रन्नादेवी था। 

• इसका साम्राज्य का विस्तार पूर्वी भारत में ओड़िशा, असम और कामरूप तक था। 

• मगध में देवपाल ने मठों सहित कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। 

महिपाल प्रथम 

• महिपाल प्रथम 988 ईस्वी में राज सिंहासन में बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 988 ईस्वी से लेकर 1038 ईस्वी तक था। 

• पाल वंश जब महिपाल प्रथम सत्ता में आया तो एक बार फिर फलने-फूलने लगा था। इसने बिहार और बंगाल के पूर्वी और उत्तरी हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लिया था। 

• वाराणसी पर महिपाल प्रथम ओर इसके भाई वसंतपाल और स्थिरपाल के साथ मिलकर विजय प्राप्त की थीं। 

• पाल वंश का अंतिम शासक गोविन्द पाल था और इसका कार्यकाल 1162 ईस्वी से लेकर 1174 ईस्वी तक था। और इसके बाद पाल वंश का पतन हो गया था। 

पाल वंश तिब्बती ग्रंथों से

• तिब्बती ग्रन्थ सतरहवीं शताब्दी में लिखे गए थे। इस ग्रन्थ में पाल वंश के बारें में पता चलता हैं। इसके अनुसार पाल वंश के शासक बौद्ध धर्म और ज्ञान को संरक्षण और बढ़ावा देते थे। नालंदा विश्वविद्यालय जो सारे पूर्वी क्षेत्र में विख्यात हैं, जिसका धर्मपाल ने पुनर्निर्माण करवाया था। इसके खर्चे के लिए धर्मपाल ने 200 गाँव दान में दिए थे। विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना भी धर्मपाल ने की थीं। कई विहारों का निर्माण भी पाल शासकों ने करवाया था। जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध रहते थे। 

• सेन साम्राज्य ने पाल साम्राज्य के पश्चात् बंगाल पर 160 वर्षों तक राज किया था। 

पाल राजवंश के इतिहास की प्रमुख घटनाओं से सम्बंधित प्रश्न

प्रश्न : नालंदा विश्वविद्यालय को किसने पुन:स्थापित किया था और विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना की थीं?

उत्तर : धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुन:स्थापित किया था और विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना भी की थीं।

प्रश्न : देवपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का प्रधान आचार्य किसे नियुक्त किया गया था?

उत्तर : देवपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का प्रधान आचार्य नगरहार के प्रसिद्ध विद्धान वीरदेव को नियुक्त किया गया था।

प्रश्न : पाल वंश किस शासक ने परमसौगात कहा गया था?

उत्तर : पाल वंश के शासक देवपाल ने परमसौगात की उपाधि धारण की थीं।

प्रश्न : बादल स्थम्भ शिलालेख से किस शासक का नाम जुड़ा हैं?

उत्तर : नारायण पाल का नाम बादल स्थम्भ शिलालेख में मिला हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top