पुष्यभूति वंश के सम्पूर्ण इतिहास के बारें में महत्वपूर्ण रोचक तथ्य

पुष्यभूति वंश का इतिहास

पुष्यभूति वंश के सम्पूर्ण इतिहास के बारें में महत्वपूर्ण रोचक तथ्य 

• आज हम पुष्यभूति वंश के सम्पूर्ण इतिहास के बारें में महत्वपूर्ण रोचक तथ्य के विषय पर बात करेंगे। कि पुष्यभूति वंश की स्थापना पुष्यभूति ने की थीं। इसलिए पुष्यभूति को इस वंश का संस्थापक माना जाता हैं। इस वंश की राजधानी थानेश्वर ( वर्तमान थानेसर हरियाणा प्रान्त के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित हैं ) थीं। इस वंश को वर्द्धन वंश के नाम से भी जाना जाता हैं। 

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पुष्यभूति वंश का इतिहास

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प्रभाकरवर्द्धन 

• इस वंश का सबसे पहला महत्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्द्धन था।  यह इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता भी था। इसने महत्वपूर्ण सम्मानजनक उपाधियाँ जैसे – महाराजधीरज और परमभट्टारक धारण की थीं। 

• इसका विवाह यशोमती से हुआ था। इससे दो पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुई थीं। इसके पुत्र का नाम राज्यवर्धन और हर्षवर्धन था तथा पुत्री का नाम राज्यश्री था। इसका विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रहवर्मा से हुआ था। 

• ग्रहवर्मा की हत्या मालवा के शासक देवगुप्त ने की थीं और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था।

• अपनी बहन का बदला लेने के लिए देवगुप्त की हत्या राज्यवर्धन ने कर दी थीं। तब देवगुप्त के मित्र गौड़ नरेश शशांक ने धोखा देकर राज्यवर्धन की हत्या कर दी थीं। शशांक शैव धर्म का अनुयायी था और इसने बोधगया में स्थित बोधिवृक्ष को कटवा दिया था।

हर्षवर्धन 

• 606 ईस्वी में राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन 16 वर्ष की अवस्था में थानेश्वर की गद्दी पर बैठा था। इसको शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता हैं। 

हर्षवर्धन का इतिहास

• पुष्यभूति वंश का सबसे महान् शासक हर्षवर्द्धन था। इसका शासनकाल लगभग 606 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। शशांक को पराजित कर इसने कन्नौज पर अधिकार कर लिया और इसने थानेश्वर से अपनी राजधानी को कन्नौज स्थानांतरित की थीं। इसने परमभट्टारक नरेश की उपाधि भी धारण की थी।

• हर्षवर्धन का दरबारी कवि बाणभट्ट था। इसने हर्षचरित और कादंबरी नामक ग्रन्थ की रचना की थीं। तथा स्वयं हर्ष ने प्रमुख नाटकों जैसे – प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानन्द की रचना संस्कृत में की थीं। तथा बाणभट्ट के गुरु का नाम भर्चु था। 

• चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से हर्षवर्धन का नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ था, जिसमें पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित कर दिया था। 

• चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में ही भारत आया था। तथा उसने ” सी-यू-की ” नामक यात्रा वृत्तांत की पुस्तक लिखी थीं। ह्वेनसांग को नीति का पंडित, वर्तमान शाक्यमुनि और यात्रियों का राजकुमार भी कहा जाता हैं। यह भारत में बौद्ध ग्रन्थ संग्रह करने और नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने के उद्देश्य से आया था।

• लगभग 641 ईस्वी में हर्षवर्धन ने अपने राजदूत को चीन भेजा था तथा दो चीनी दूत 643 ईस्वी और  645 ईस्वी में उसके दरबार में आये थे।

• कश्मीर के शासक से हर्षवर्धन ने बुद्ध के दंत अवशेष बलपूर्वक छीन लिए थे।

• इसके पूर्वज भगवान सूर्य और शिव के अनन्य उपासक थे। यह प्रारम्भ में अपने कुल के देवताओं शिव का परम् भक्त था। परन्तु चीनी यात्री ह्वेनसांग से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्याश्रय प्रदान किया और पुरी तरह से बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।

• इसके शासनकाल में महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रमुख केन्द्र नालंदा महाविहार था।

• पप्रयाग में प्रति पांचवे वर्ष इसके समय में एक समारोह आयोजित किया जाता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता था। इन समारोह में से 6th समारोह में ह्वेनसांग स्वयं शामिल हुए थे।

• भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन को कहा जाता हैं, लेकिन वह न तो सारे देश का शासक था और न ही कट्टर हिन्दू था।

• महाराज अथवा महासामंत इसके अधीनस्थ शासक कहे जाते हैं। ” सचिव या आमात्य ” इसके मंत्रिपरिषद के मंत्री को कहा जाता हैं।

• इसका साम्राज्य कई प्रांन्तों में विभाजित किया गया था। प्रान्त को भुक्ति कहा जाता था। प्रत्येक भुक्ति का शासक उपरिक, राजस्थानीय अथवा राष्ट्रीय कहलाता था। भुक्ति का विभाजन जिलों में होता था। जिले की संज्ञा थी विषय, जिसका प्रधान विषयपति होता था। विषय के अन्तर्गत कई पाठक (आधुनिक तहसील) होते थे।

• शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थीं जिसका प्रधान ग्रामाक्षपटलिक कहा जाता था।  

• चाट या भाट पुलिस कर्मियों को कहा जाता था तथा पुलिस विभाग के अधिकारी को दण्डपाशिक तथा दाण्डिक कहा जाता था। 

• बृहदेश्वर अश्व सेना के अधिकारियों को, बलाधिकृत या महाबलाधिकृत पैदल सेना के अधिकारियों को कहा जाता था। 

• तुलायन्त्र ( जलपम्प ) का उल्लेख हर्षचरित में सिंचाई के साधन के रूप में मिलता हैं।

• इसके समय में सूती वस्त्र के निर्माण के लिए मथुरा सबसे अधिक प्रसिद्ध था। 

• प्रांतीय शासक के लिए हर्षचरित में ” लोकपाल ” शब्द का उल्लेख किया गया हैं। 

हर्षचरित के अनुसार हर्षवर्धन की मंत्रिपरिषद 

• गुप्त वंश के पतन के बाद कुछ नये राजवंशों का उदय हुआ, जिसमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं जैसे – पुष्यभूति, गौड़, मैत्रक, परवर्ती गुप्त और मौखरि। इन राजवंशों में से सबसे बड़ा साम्राज्य पुष्यभूति वंश के शासकों ने स्थापित किया। 

पुष्यभूति वंश से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न : हर्षचरित कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है, जो किसके द्वारा रचित हैं?

उत्तर : बाणभट्ट

प्रश्न : उत्तर-गुप्त युग में सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कौनसा था?

उत्तर : नालंदा विश्वविद्यालय

प्रश्न : हर्षवर्धन (606 से 647 ईस्वी) किस वंश के शासक थे?

उत्तर : पुष्यभूति वंश

प्रश्न : हर्षवर्धन की वल्लभी विजय किस शिलालेख में से पाया गया है?

उत्तर : नवसारी ताम्रपत्र शिलालेख

प्रश्न : तीर्थयात्रियों के राजकुमार के रूप में प्रतिष्ठित ह्वेनत्सांग ने किस सम्राट के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया था?

उत्तर : हर्षवर्धन के काल में।

प्रश्न : किस व्यक्ति को ‘द्वितीय अशोक’ भी कहा जाता है?

उत्तर : हर्षवर्धन

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