बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म का विवरण

🔰 बौद्ध धर्म की स्थापना 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व में बताई जाती हैं । यह धर्म भारत के प्राचीनतम धर्मों में से एक हैं  यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म हैं। इस धर्म के लोग ज्यादातर दक्षिण एशिया में बसे हुए हैं। इस धर्म का विस्तार चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत में फैला हुआ हैं, बौद्ध धर्म के लोगों का सर्वाधिक विस्तार चीन में हैं। बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया।

🔰 बौद्ध ग्रन्थों में त्रिपिटक का वर्णन किया गया हैं, सुत्त पिटक, विनयपिटक और अभिधम्म पिटक। इन पिटको की भाषा पालि हैं।

🔰 बौद्ध धर्म का विभाजन कनिष्क के शासनकाल में दो शाखाओं में हुआ था, हीनयान और महायान

  हीनयान :- गौतम बुद्ध के मूल उपदेशों को इस शाखा के अनुयायियों ने स्वीकार किया।

महायान :- बुद्ध की मूर्ति पूजा का प्रचलन इस शाखा के अनुयायियों ने किया।

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बौद्ध धर्म

 बौद्ध धर्म के संस्थापक

🔰 इस धर्म के वास्तविक संस्थापक गौतम बुद्ध को माना जाता हैं। गौतम बुद्ध को एशिया का ज्योतिपुंज भी कहा जाता हैं। यह धर्म अनीश्वरवादी और अनात्मवादी हैं।

🔰 बौद्ध धर्म में तीन रत्न बताए हुए हैं – बुद्ध, धम्म और संघ।

गौतम बुद्ध का परिचय

🔰 इनका जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक गाँव में नेपाल में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोदन था, जो कि शाक्य गण के प्रधान थे।

🔰 इनकी माता महामाया देवी थीं, जो कि कोलियगण की राजकुमारी थीं। इनकी मृत्यु बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद हीं हो गई थीं इनके बाद इनका पालन-पोषण सौतेली माँ ( मौसी ) प्रजापति गौतमी ने किया था।

🔰 इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। व इनकी पत्नी का नाम यशोधरा था। इनका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में हो गया था। व इनके पुत्र का नाम राहुल था।

🔰 ये जब कपिलवस्तु के भ्रमण के लिए गए तों इन्होंने चार दृश्य देखे – बूढ़ा व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, शव और एक संन्यासी।

🔰 बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में सांसारिक समस्याओं से दुःखी होकर गृह त्याग दिया। इस त्याग की घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता हैं।

🔰 बुद्ध के प्रथम गुरु अलारकलाम थे उनसे इन्होंने सांख्य दर्शन की शिक्षा ली। जिससे इनको शून्य का ज्ञान प्राप्त हुआ। इनके बाद बुद्ध ने राजगीर के रुद्रकरामपुत्त से शिक्षा लेकर योग का ज्ञान प्राप्त किया।

🔰 उरुवेला में बुद्ध को पाँच साधक कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी मिले।

🔰 बिना खाए पिए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद बुद्ध कौ उरुवेला में निरंजना ( पुनपुन ) नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे वैशाख की पूर्णिमा की रात को 35 वर्ष की अवस्था में ज्ञान की प्राप्ति हुई।

🔰 सारनाथ ( ऋषिपतनम् ) में बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया, इस उपदेश की प्रक्रिया को बौद्ध ग्रन्थों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता हैं। सर्वाधिक उपदेश बुद्ध ने श्रावस्ती में दिए थे तथा कुछ उपदेश कौशल, वैशाली और कौशाम्बी में दिए थे। इन्होंने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए थे।

🔰 महात्मा बुद्ध के प्रथम अनुयायी तपस्सु और काल्लिक नामक दो शूद्र थे। तथा प्रमुख अनुयायी बिम्बिसार, प्रसेजनीत और उदायिन थे।

🔰 गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सार को प्रतीत्यसमुत्पाद कहा जाता हैं।

🔰 गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म से सम्बंधित कहानियों का संग्रह जातक कथाओं में मिलता हैं। कथावस्तु हीनयान का प्रमुख ग्रन्थ हैं, जिसमें बुद्ध का जीवन – चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित हैं। 

🔰 गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईस्वी पूर्व कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में चुन्द द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद 80 वर्ष की अवस्था में हुई थीं। इस मृत्यु की घटना को बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता हैं।

बुद्ध से सम्बंधित प्रतीक चिह्न

बुद्ध की शिक्षाएँ

🔰 गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं

सांसारिक दुःखों के बारे में बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए हैं –

🔰 दुःख, दुःख समुदय, दुःख विशेष, दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा।

1. दुःख :- प्राणी जन्म भर विभिन्न दुःखों से जुझता रहता हैं –  जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

2. दुःख समुदय :- तृष्णा या चाहत, दुःख का हीं कारण है, वह उसकी प्रेरणा से फिर से जन्म लेता हैं।

3. दुःख निरोध :- इच्छा के नहीं रहने से न हीं तों संसार की वस्तुओं के कारण कोई दुःख होता हैं और न हीं मरने के बाद उसका पुनर्जन्म होता हैं। निरोध की प्राप्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग हैं

अष्टांगिक मार्ग 

🔰  इस धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य दुःख निरोध का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ।

▶️ दुःखों के निवारण के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया हैं। 

  1. सम्यक् दृष्टि :- चार आर्य सत्य में विश्वास करना।

2. सम्यक् संकल्प :- मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना।

3. सम्यक् वाक् : – हानिकारक बातें और झूट न बोलना।

4. सम्यक् कर्मान्त :- हानिकारक कर्मों को न करना।

5. सम्यक् आजीव :- कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना।

6. सम्यक् व्यायाम :- अपने आप सुधरने की कोशिश करना और हमेशा व्यायाम करना।

7. सम्यक् स्मृति:- स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना।

8. सम्यक् समाधि:-  स्वयं का गायब होना और महापरिनिर्वाण पाना।

भारत के महत्वपूर्ण बौद्ध मठ

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महाजनपदों का उदय

🔰 महाजनपद का उदय छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास कृषि में नवीन तकनीक तथा लोहे के प्रयोग के कारण अधिशेष उत्पादन होने लगा। कृषि अधिशेष से व्यापार एवं वाणिज्य को बल मिला, जिससे दूसरी नगरीय क्रान्ति आई। इस कारण उत्तर वैदिक काल के जनपद, महाजनपदों में परिवर्तित हो गए।

🔰  महाजनपदों की कुल संख्या 16 थी, जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु एवं जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र में मिलता है। इसमें से मगध, कोमल, वत्स और अवन्ति सर्वाधिक शक्तिशाली थे।

महाजनपद एवं उनकी राजधानी

जैन धर्म

सिन्धु घाटी सभ्यता

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