मगध साम्राज्य
👉🏻 भारत के सोलह महाजनपदों में से मगध एक प्राचीन महाजनपद था, जो सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था।मगध महाजनपद का विस्तार आधुनिक पटना तथा गया में था। इसकी राजधानी गिरिव्रज या राजगृह थी। मगध साम्राज्य की स्थापना बृहद्रथ ने की थीं। यहाँ के राजा बृहद्रथ और उसका पुत्र जरासंघ था। इस साम्राज्य का उल्लेख अथर्ववेद में मिलता हैं। प्राचीन भारत में साम्राज्यवाद की शुरुआत या विकास का श्रेय मगध को दिया जाता हैं।
हर्यक वंश का इतिहास
👉🏻 इस वंश का कार्यकाल 544 ईसा पूर्व से 412 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता हैं। इस वंश का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार था। हर्यक वंश की राजधानी गिरिब्रिज ( राजगृह ) थीं। बाद हर्यक वंश की राजधानी उदायिन ने राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की थीं।
बिम्बिसार
👉🏻 बिम्बिसार को हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं इसका जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था।बिम्बिसार को श्रेणिय अथवा श्रेणिक भी कहा जाता था। इसका कार्यकाल 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता हैं।
👉🏻 बिम्बिसार ने अपने वैवाहिक संबंधों के आधार पर अपने राज्य की नींव रखी, उसने कुल तीन राजवंशो में अपने वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा, लिच्छवि राज्य में चेटक की पुत्री चेलना और कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से विवाह किया था, तो उसे दहेज में काशी का प्रान्त मिल गया।
👉🏻बिम्बिसार ने अंग राज्य के शासक ब्रह्मदत्त को पराजित कर उसे अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार उसने अपने राज्य का विस्तार किया।
👉🏻 बिम्बिसार ने अपने राजकीय चिकित्सक जीवक को अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत महासेन के इलाज के लिए अवन्ति भेजा था। बिम्बिसार बौद्ध एवं जैन दोनों धर्मों को मानने वाला अनुयायी था इसके दरबार में बुद्ध स्वयं आये थे। इसका पुत्र अजातशत्रु था, अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या कर दी थीं।
अजातशत्रु
👉🏻 अजात शत्रु बिम्बिसार का पुत्र था, जिसने अपने पिता बिम्बिसार को बन्दी बनाकर सत्ता पर कब्जा जमाया था। इसका कार्यकाल 492 ईसा पूर्व से 460 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता हैं, अजातशत्रु को कुणिक के नामा से भी जाना जाता था। वर्षकार इसके सुयोग्य मंत्री का नाम था।
👉🏻अजातशत्रु ने वज्जि संघ के लिच्छवियों को पराजित करने के लिए ” रथमूसल ( आधुनिक टैंको के समान ) ” और ” महाशिलाकण्टक ” नामक दो गुप्त हथियारों का उपयोग किया था। अजात शत्रु ने कोशल नरेश प्रसेनजित से युद्ध किया था जिसमें प्रसेनजित पराजित हो गया परन्तु बाद में दोनों में समझौता हो गया और प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा से अजातशत्रु का विवाह करा दिया।
👉🏻 यह जैन धर्म का अनुयायी था, इसके शासनकाल में ही प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगृह के सप्तपर्णि गुफा में 483 ईस्वी पूर्व में हुआ था।अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन ने की थीं।
उदायिन
👉🏻 उदायिन अजात शत्रु का पुत्र था जिसने अपने पिता अजात शत्रु की हत्या की थीं। इसका कार्यकाल 460 ईसा पूर्व से 444 ईसा पूर्व के मध्य था। इसका एक और नाम उदय भद्र था। यह हर्यक वंश का तीसरामहत्वपूर्ण शासक था, उसने गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र ( आधुनिक पटना ) शहर बसाया था तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
👉🏻 उदायिन के बाद उसके तीन पुत्रों अनिरूद्ध, मुण्डक और नागदशक ने बारी-बारी से शासन किया। इस वंश का अंतिम शासक नाग दशक को कहा जाता हैं। नाग दशक को हटाकर शिशुनाग ने एक नये राज्य वंश शिशुनाग वंश की स्थापना की।
शिशुनाग वंश का इतिहास
👉🏻 शिशुनाग वंश का संस्थापक शिशुनाग को माना जाता हैं इस वंश का कार्यकाल 412 ईसा पूर्व से 344 ईसा पूर्व के मध्य माना जाता हैं। इस वंश का अंतिम शासक नंदिवर्मन था।
शिशुनाग
👉🏻 शिशुनाग ने नाग दशक को हटाकर शिशुनाग वंश की स्थापना की थीं। इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि अवन्ति राज्य को जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित करना था। इसका कार्यकाल 412 ईसा पूर्व से 394 ईसा पूर्व के मध्य था। इसकी राजधानी वैशाली थीं।
कालाशोक
👉🏻 इसके शासन काल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में 383 ईस्वी पूर्व में अध्यक्ष सर्वकामी के नेतृत्व में हुआ था इसने अपनी राजधानी वैशाली से पाटिलपुत्र स्थानान्तरित की थीं। इसको कांकवर्ण के नाम से भी जाना जाता था।
नन्द वंश का इतिहास
👉🏻 नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द माना जाता हैं इस वंश का शासन काल 344 ईसा पूर्व से लेकर 324 ईसा पूर्व के मध्य था।
महापद्मनन्द
👉🏻 महापद्मनन्द नन्द वंश का संस्थापक माना जाता हैं। इसको ” सर्वक्षत्रान्तक ” अर्थात् ” सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला ” कहा जाता हैं इसने एकछत्र प्रान्त की स्थापना की तथा ” एकराट् ” की उपाधि धारण की थीं। यह मगध का सर्वश्रेष्ठ शासक था इसने सर्वप्रथम कलिंग पर विजय प्राप्त की तथा वहाँ एक नहर का निर्माण करवाया था। यह जैन धर्म का अनुयायी था। इसका उल्लेख खारवेल के हाथी गुम्फा में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में मिलता है।
घनानन्द
👉🏻 नन्द वंश का अंतिम शासक घनानंद था। यह महापद्मनन्द के बाद गद्दी पर बैठा था। इसने जनता पर बहुत से कर लगाये थे।
👉🏻 इसके शासन काल में सिकन्दर ने उत्तर- पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था, लेकिन वह ब्यास नदी तट तक ही आया तथा उसके बाद वह वापस लौट गया था। तक्षशिला के आचार्य विष्णुगुप्त इसके दरबार में आये थे। घनानंद ने उनको अपमानित किया उसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से उसने घनानन्द को गद्दी से हटाकर एक नए वंश मौर्य वंश की स्थापना की थीं।
सिकन्दर का भारत आगमन
👉🏻 सिकन्दर यूनान के मकदूनियाँ ( मेसीडोनिया ) क्षेत्र का रहने वाला फिलिप द्वितीय का पुत्र था। इसका जन्म 356 ईसा पूर्व में हुआ था। वह अपने पिता फिलिप द्वितीय की हत्या कर गद्दी पर बैठा था। यह अरस्तु का शिष्य था। सेल्यूकस निकेटर इसका सेनापति था। विश्व विजय की योजना के अंतर्गत उसने भारत पर आक्रमण किया।
👉🏻 झेलम तथा चिनाब के मध्यवर्ती प्रदेश पुरु के शासक पोरस ने सिकन्दर का सबसे जबरदस्त विरोध किया तब सिकंदर और पोरस के बीच 326 ईस्वी पूर्व झेलम नदी के किनारे घमासान युद्ध हुआ, जिसे ” वितस्ता ( झेलम ) का युद्ध ” या ” हाइडेस्पीज का युद्ध के नाम से जाना जाता हैं। इस युद्ध में पोरस पराजित हो गया।
👉🏻 इसके प्रिय घोड़े का नाम बऊकेफला था। झेलम नदी के किनारे अपने घोड़े के नाम पर बऊकेफला नामक नगर बसाया था।
👉🏻 सिकन्दर भारत में कुल 19 महीने रहा। क्योंकि बाद में सिकंदर की सेन ने व्यास नदी पार करने से मना कर दिया था। फिर उसे वापस लौटना पड़ा था।
👉🏻 इसकी मृत्यु वापस लौटते समय बेबीलोन में 33 वर्ष की अवस्था में 323 ईस्वी पूर्व हो गई थीं।