” वैदिक सभ्यता “

" वैदिक सभ्यता "

वैदिक सभ्यता

वैदिक काल

👉 वैदिक सभ्यता में वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य को माना जाता है आर्यो की जानकारी का उल्लेख ऋग्वेद में दिया गया है। ” वैदिक सभ्यता ” में मैक्स मूलर ने आर्यो का निवास स्थान मध्य एशिया को माना है। आर्य सबसे पहले सिन्धु नदी के आस-पास पंजाब और अफगानिस्तान में बसे थे यहाँ पर आर्य सप्त सिन्धु क्षेत्र में बसे थे । यह क्षेत्र आधुनिक पंजाब और उसके आस-पास का क्षेत्र था। वैदिक संस्कृति में नदियों में प्रमुख नदीतमा ( सरस्वती ) नदी को माना गया है

" वैदिक सभ्यता "

👉 वैदिक सभ्यता में वैदिक काल को दो भागों के रूप में बाँटा गया है।

1. ऋग्वैदिक काल – 1500 ईस्वी पूर्व से 1000 ईस्वी पूर्व माना गया है।

2. उत्तर वैदिक काल – 1000 ईस्वी पूर्व से 600 ईस्वी पूर्व माना गया हैं।

ऋग्वैदिक काल 

👉 ऋग्वैदिक काल में आर्य कई छोटे-छोटे कबीलों में बँटे हुए थे। इस काल में कबीले को ‘जन’ कहा गया है। कबीले के सरदार को ‘राजन’ कहा जाता था, जो यहाँ के शासक होते थे। यहाँ की सबसे छोटी राजनीतिक इकाई कुल या परिवार थी, कई कुल मिलकर ग्राम बनते थे। जिसका प्रधान ‘ग्रामणी’ होता था। कई ग्राम मिलाकर ‘विश’ का निर्माण होता था, जिसका प्रधान ‘विशपति’ होता था तथा कई ‘विश’ मिलाकर ‘ जन ‘  का निर्माण होता था जिसका प्रधान ‘राजा’ होता था।

👉 इस काल में आर्यो की भाषा संस्कृत थी । 

👉 ऋग्वेद में  तथा ‘विश’ का 170 बार तथा ‘जन’ का 275 बार वर्णन किया गया है। ‘सभा’, ‘समिति’ ‘विदथ’ एवं गण सभी राजनीतिक संस्थाएँ थी।

👉 ऋग्वैदिक काल के परिवार पितृसात्तत्मक थे।

👉 इस काल में समाज में वर्ण-व्यवस्था कर्म पर आधारित थी। चाटूश्यावर्णय समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के 10वें मण्डल के पुरुष सूक्त’ में चार वर्णों का उल्लेख किया गया है जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रः है। आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए है ।आर्यो का मुख्य पेय पदार्थ ‘ सोम ‘ था तथा उनका प्रमुख खाद्य पदार्थ  ‘ यव ‘ ( जौ ) था।

👉 इस समय समाज में ‘विधवा विवाह’, ‘नियोग प्रथा’ तथा ‘पुनर्विवाह’ का प्रचलन था लेकिन ‘पर्दा प्रथा’, ‘बाल-विवाह’ तथा ‘सती-प्रथा’ प्रचलित नहीं थी। इस कारण समाज मे स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी । 

👉 ऋग्वेद में उल्लिखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी।

ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवी देवता 

👉 इस काल के देवताओं में सबसे अधिक महत्त्व ‘इन्द्र’ को दिया जाता था। जो कि युद्ध के देवता के रूप में माने जाते थे। तथा उसके बाद ‘अग्नि’ व ‘वरुण’ को महत्त्व प्रदान किया गया था।

👉 इस काल में ” सरस्वती ” को नदी देवी कहाँ गया है बाद में सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता था।

👉 इस काल में ” मित्र ” को शपथ तथा प्रतिज्ञा का देवता माना गया है।

👉 इस काल में ” सूर्य ” को भुवनचक्षु अर्थात् जीवन देने वाला देवता माना गया था।

👉 इस काल में ” सोम ” को वनस्पति के देवता तथा ” पूषन ” को पशुओं तथा वनस्पति के देवता माना जाता था ।

👉 इस काल में ” अग्नि ” को देवताओं और मनुष्यों के बीच की कड़ी कहाँ गया था 

👉 ऋग्वेद में इन्द्र को ” किले को तोड़ने वाला ” ( पुरन्दर )कहा गया है । ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 सूक्त हैं।

👉 धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, दायित्वों, कर्तव्यों, व्यवसायों और विशेषधिकारों में विभेद करता है ।

ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ

उत्तर वैदिक काल

👉 इस काल के राजनीतिक संगठन की मुख्य विशेषता यह थी कि वह बड़े राज्यों तथा जनपदों की स्थापना करना चाहते थे। 

👉 राजत्व के ‘दैवी उत्पत्ति के सिद्धान्त’ का सबसे पहले उल्लेख ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में किया गया है।

👉 इस काल में राजा का अत्यधिक महत्त्व बढ़ा। और उसका पद वंशानुगत होता चला गया 

👉 इस काल के परिवार पितृसत्तात्मक थे। तथा संयुक्त परिवार की प्रथा विद्यमान थी।

👉 इस काल में समाज स्पष्ट रूप से चार वर्णों बँटा था ; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। वर्ण व्यवस्था कर्म के बदले जाति पर आधारित थी।

👉 इस काल में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उन्हें किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार तथा धन सम्बन्धी अधिकार प्राप्त नहीं थे।

👉 सर्वप्रथम चार आश्रमों का विवरण ‘जाबालोपनिषद्’ में मिलता है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास का।

👉 धार्मिक एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों में कठिनाइयाँ आयी।

👉 इस काल में सबसे प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा), विष्णु एवं रुद्र (शिव) थे।

👉 उत्तरवैदिक काल में लोहे के उपयोग के प्रमाण सबसे पहले 1000 ईस्वी पूर्व उत्तर प्रदेश के अंतरजीखेड़ा से मिले है।

 षड्दर्शन एवं उनके रचयिता

सिन्धु घाटी सभ्यता

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