वैदिक साहित्य के बारें में कुछ फैक्ट

वैदिक साहित्य

वैदिक साहित्य

👉 भारत का सबसे पुराना धर्मग्रंथ वेद है, इनका संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने किया था। वेद वसुद्धैव कुटुम्बकम् का उपदेश देता है। भारतीय परम्परा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती है।

👉 वेद चार प्रकार के होते हैं इन वेदों को संहिता कहा जाता है

1. ऋग्वेद

2. यजुर्वेद

3. सामवेद

4. अथर्ववेद ।

ऋग्वेद

👉 यह सबसे प्राचीनतम वेद है  

👉 ऋग्वेद को ऋचाओं का क्रमबद्ध ज्ञान का संग्रह कहा जाता है। इस वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10,462 ऋचाओं का उल्लेख किया गया है। इस वेद की भाषा पद्यात्मक है  इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहा जाता हैं।

👉 इस वेद में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है जो विश्वामित्र द्वारा रचित तीसरे मंडल में सूर्य से संबंधित देवी सावित्री को सम्बोधित है। इस वेद के 9वें मण्डल में सोम देवता का वर्णन किया गया है। इस वेद से आर्यो की राजनीतिक प्रणाली, इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के विवरण मिलते है।

👉 इस वेद 8वें मंडल की हाथों से लिखी ऋचाओं को ” खिल ” कहा जाता है।

👉 इस वेद में सबसे बड़ा 10वाँ मंडल है। इसमें नदिस्तुति सूक्त अर्थात् नदियों की प्रशंसा, पुरुषसूक्त्त अर्थात् वैदिक समाजशास्त्र, नासदीय सूक्त अर्थात् ब्रह्मांड के सृजन से संबंधित विभिन्न अनुमान, सूर्य सूक्त अर्थात् विवाह श्लोक आदि सम्मिलित है।

👉 इस वेद में गाय को अघन्या कहाँ जाता हैं।

👉 वेद में ऐतरेय एवं कौषीतकी जैसे ब्राह्मण ग्रन्थ का उल्लेख मिलता हैं।

👉 इस वेद में इन्द्र के लिए 250 सूक्त तथा अग्नि के लिए 200 सूक्त की रचना की गयी है।

👉 वैदिक साहित्य में इस वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में है।

यजुर्वेद

👉 यज्ञ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं। शतपथ और तेत्तिरीय ब्राह्मण ग्रन्थ यजुर्वेद से संबंधित हैं।

👉 इस वेद में यज्ञ के नियमों एवं विधि-विधानों का विवरण मिलता है। इस वेद में बलिदान विधि का भी वर्णन है।

👉 इस वेद में ऋग्वेद के 663 मंत्र पाए गए हैं।

👉 यह एक ऐसा वेद हैं जिसके मंत्र गद्य एवं पद्य दोनों में है।

👉 यह वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थ है।

👉 यह हिन्दू के चार पवित्र वेदों में से एक और महत्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं।

👉 इस ग्रन्थ की 101 शाखाएँ बताई गई हैं जिसमें से कृष्ण और शुक्ल यजुर्वेद अत्यधिक प्रसिद्ध हैं इनको वाजसनेयी और तैत्तिरीय संहिता भी कहा जाता हैं।

👉 ” यजुस ” इस वेद के गद्यात्मक मन्त्रों को कहा जाता हैं।

👉 इस वेद के पद्यात्मक मंत्र ऋग्वेद और अथर्ववेद से लिए गए हैं। 

सामवेद 

👉 इस वेद का अर्थ है गान। इस वेद में यज्ञ के अवसर पर संकल्पित मन्त्रों को देवताओं की आराधना के लिए गाया जाता हैं।  इस वेद में मन्त्रों के पाठकर्ता को उद्रातृ कहते हैं। इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है। इसमें 1810 सूक्त हैं जो ऋग्वेद से लिए गए हैं।

👉 इस वेद को भारतीय संगीत का जनक को कहा जाता है।

👉 इस वेद में पंचवीश ब्राह्मण ग्रन्थ का उल्लेख किया गया हैं।

👉 यजुर्वेद और सामवेद में किसी भी ऐतिहासिक घटना का संकलन नहीं मिलता है।

अथर्ववेद 

👉 अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य हैं। इसके कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी अधिक प्राचीन हैं। ओषधियों का उल्लेख सबसे पहले इस वेद में मिलता है।

👉 इस वेद से ब्रह्म ज्ञान, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गों की खोज, विवाह, प्रणय गीत, समन्वय, राजभक्ति, राजा का चुनाव, मातृभूमि महात्मय, वशीकरण, प्रायश्चित, बहुत सी वनस्पतियों, शाप आदि का विवरण दिया गया हैं।

👉 इस वेद के कुछ मन्त्रों में जादू – टोने, टोना – टोटका का संकलन किया हुआ हैं।

👉 इस वेद में ऐतिहासिक दृष्टि से सामान्य मनुष्यों के अन्धविश्वासों एवं विचारों का संकलन मिलता हैं।

👉 पृथिवीसूक्त अथर्ववेद का प्रतिनिधि सूक्त पृथिवीसूक्त को माना जाता है।

👉 परीक्षित को इस वेद में कुरुओं का राजा कहा गया है तथा कुरु देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण इसमें मिलता है।

👉 इस वेद में प्रजापति की दो पुत्रियाँ सभा एवं समिति को कहा गया है।

👉  वेदों की भी कई शाखाएँ हैं जो वैदिक अध्ययन और व्याख्या से जुड़े विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करती है।शाकल शाखा ऋग्वेद से जुड़ी एकमात्र जीवित शाखा है।    अथर्ववेद वेद की शाखाएँ शीनक और पैप्पलाद हैं।

👉 इस वेद में गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ का संकलन किया गया हैं।

उपनिषद

👉 उपनिषदों की संख्या 108 है, जिनमें से 13 उपनिषदों को मूलभूत उपनिषदों की श्रेणी में रखा गया है।

👉 भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ” सत्यमेव जयते ” मुण्डकोंपनिषद् से लिया गया हैं। यह ब्रह्म विषयक होने के कारण इसे ” ब्रह्म विद्या ” कहा जाता हैं।

👉 इसमें संसार के संदर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचार, आत्मा एवं परमात्मा का संकलन मिलता हैं।

👉 यह दर्शन की विषय वस्तु हैं।

👉 मैत्रेयनी संहिता स्त्री की सबसे अधिक गिरी हुई स्थिति प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भाँति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया है।

👉 शतपथ ब्राह्मण में पुरुष की अर्धागिनी स्त्री को कहा गया है।

वेदांग एवं सूत्र

👉 वेदों के अर्थ समझने व सूक्तियों के सही उच्चारण के लिए छह वेदांगों एवं सूत्र की रचना की गई। शिक्षा (शुद्ध उच्चारण शास्त्र), कल्प (कर्मकाण्डीय विधि), निरूक्त (शब्दों की व्युत्पत्ति का शास्त्र), व्याकरण, छन्द व ज्योतिष ।

👉 वैदिक साहित्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया है। श्रीत, गृह तथा धर्मसूत्रों के अध्ययन से हमें यज्ञीय विधि-विधानों, कर्मकाण्डों तथा राजनीति, विधि एवं व्यवहार से संबंधित महत्वपूर्ण बातें ज्ञात करते हैं।

👉 प्रमुख सूत्रकारों में गोतम बौद्धायन, आपस्तम्भ , वशिष्ठ आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

👉 गौतम धर्मसूत्र सबसे प्राचीन सूत्र माना गया है।

स्मृति

👉 वैदिक साहित्य में स्मृतियों को धर्म शास्त्र कहा जाता हैं।

👉 स्मृति में मनुस्मृति सबसे पुरानी हैं जिसकी रचना 200 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व के बीच में की गई थी।

पुराण

👉 भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध संकलन पुराणों में मिलता है। इन पुराणों में ” मत्स्य पुराण ” सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक हैं। जिसमें विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख किया हुआ हैं। इसके रचयिता लोमहर्ष और इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं।

👉 पुराणों की संख्या 18 हैं, इनमें से कुछ मत्स्य, वायु विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं के वंश पाए गए हैं।

👉 मौर्य वंश से विष्णु पुराण संबंधित हैं।

👉 आंध्र सातवाहन वंश से मत्स्य पुराण संबंधित हैं।

👉 वायु पुराण गुप्त वंश से संबंधित हैं। 

👉 अग्निपुराण सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है इस पुराण में राजतन्त्र के साथ-साथ कृषि से संबंधित विवरण भी दिया गया है।

👉 सरल संस्कृत श्लोक में अधिकतर पुराणों को लिखा गया हैं हैं। वेद पढ़ने की अनुमति स्त्रियाँ तथा शूद्र नहीं थी, केवल वे पुराण सुन सकते थे। पुजारी पुराणों का पाठ मंदिरों में किया करते थे।

वैदिक सभ्यता

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