शैव धर्म से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

शैव धर्म का इतिहास

शैव धर्म

प्रस्तावना 

👉 भगवान शिव की पूजा करने वालों को शिव के उपासक अथवा शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। हड़प्पा संस्कृति से शिवलिंग-उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य के अवशेषों से मिलता है।

शैव धर्म का इतिहास

👉 हिंदू धर्म के अंदर शैव धर्म एक प्रमुख परंपरा है जिसका धर्मशास्त्र मुख्य रूप से हिंदू भगवान शिव से संबंधित है। शैव धर्म में क्षेत्रीय विविधताओं और दर्शन में भिन्नता के साथ कई अलग-अलग उप-परंपराएँ हैं। शैव धर्म में अद्वैतवाद , द्वैतवाद और मिश्रित विद्यालयों से लेकर विभिन्न दार्शनिक विद्यालयों के साथ एक विशाल साहित्य है।

👉 ऋग्वेद में ‘रुद्र’ नामक देवता का उल्लेख शिव के लिए किया गया हैं ।

👉 शिव को अथर्ववेद में भव, शर्व, पशुपति एवं भूपति कहा गया है।

👉 शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है। इस धर्म के लोग एकेश्वर वादी होते हैं। इस धर्म के संन्यासी जटाएँ रखते हैं। इस धर्म के लोग चोटी नहीं रखते यह केवल सिर तो मुंडाते हैं। इस धर्म के लोग सफेद और भगवा वस्त्र धारण करते हैं कुछ लोग हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धुनि भी रमाते हैं ।

👉  समाधि देने की परंपरा शैव सम्प्रदाय में है। इनके मंदिरों कों शिवालय कहा जाता हैं जहाँ पर शिवलिंग के अलावा और भी कई देवी देवता होते हैं जिनकी सुबह, शाम पूजा की जाती हैं। इस सम्प्रदाय के लोग भभूति और चंदन का तिलक लगाते हैं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।

👉 मत्स्यपुराण में लिंग-पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मिलता है।

👉 लिंग-पूजा का वर्णन महाभारत के अनुशासन पर्व से भी मिलता है।

👉 पार्वती का नाम ” तैत्तिरीय ” रूद्र की पत्नी के रूप में आरण्यक में मिलता है।

👉 पद्मा, पार्वती, उमा, गौरी एवं भैरवी शिव की पत्नी के सौम्य रूप हैं।

👉 शैव सम्प्रदाय की संख्या  ‘वामन पुराण’ में चार बतायी गयी है। वैसे तो इनकी संख्या पाँच हैं, यह निम्नलिखित हैं।

शैव धर्म के सम्प्रदाय और उनके संस्थापक

शैव धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय

 पाशुपत सम्प्रदाय 

👉 शैवों का अत्यधिक प्राचीनतम सम्प्रदाय पाशुपत सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय के संस्थापक लकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।

👉 पंचार्थिक पाशुपत सम्प्रदाय के अनुयायियों को कहा जाता हैं।पाशुपत सूत्र इस मत का प्रमुख सैद्धान्तिक ग्रंथ है। एक विख्यात पाशुपत आचार्य श्रीकर पंडित थे।

कापालिक सम्प्रदाय 

👉 भैरव ईष्टदेव कापालिक सम्प्रदाय के ईष्टदेव थे। कापालिक सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र श्री शैल नामक स्थान था।

कालामुख सम्प्रदाय 

👉 शिव पुराण में कालामुख सम्प्रदाय के अनुयायिओं को महाव्रतधर कहा गया है। इस सम्प्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल तथा सुरापान करते हैं और साथ इस सम्प्रदाय के लोग अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं।

लिंगायत सम्प्रदाय 

👉 दक्षिण में लिंगायत सम्प्रदाय प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता था। शिव लिंग की उपासना लिंगायत सम्प्रदाय के लोग करते थे।

👉 लिंगायत सम्प्रदाय का मुख्य धार्मिक ग्रंथ  ‘शून्य सम्पादने’ है।

👉 लिंगायत सम्प्रदाय के प्रवर्तक बसव पुराण में अल्लभ प्रभु तथा उनके शिष्य बासव को बताया गया है। यह सम्प्रदाय को वीरशिव सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता हैं।

👉  कर्नाटक के कल्चुरी राजाओं के दरबार में बासव व उनका भतीजा चन्ना बासव रहते थे। इन्होंने अपने मत की स्थापना जैनों के साथ कठिन संघर्ष के उपरान्त थी। उन्होंने जाति प्रथा का कड़ा विरोध किया और उपवास, प्रीतिभोज, तीर्थयात्रा एवं बलि प्रथा को अस्वीकार किया। इन्होंने विधवा विवाह की प्रथा आरम्भ की और बाल-विवाह का जमकर विरोध किया था।

👉 तमिल में पाँचवें वेद के रूप में 12वीं शताब्दी में राजा कुलोतुंगा II के शासनकाल में सेक्किल्हार द्वारा लिखित तिरुतुंदर-पुराणम, जिसे थिरूथोंडा थोगई के नाम से भी जाना जाता है और यह शैव परंपरा में बारहवीं पुस्तक भी है। यह भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित एक भक्ति पाठ है और इसे तमिल शैववाद में एक महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। भगवान शिव के भक्तों द्वारा यह पाठ तमिलनाडु में व्यापक रूप से पढ़ा और सुनाया जाता है। इसे तमिलनाडु में शैव परंपरा के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। यह तमिल शैववाद के विहित कवियों, तिरसठ नयनारों की कहानियाँ बताता है।

नाथ सम्प्रदाय 

👉 मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ सम्प्रदाय की स्थापना 10वीं शताब्दी में की थीं। बाबा गोरखनाथ के समय में नाथ सम्प्रदाय का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार हुआ। वर्णव्यवस्था तथा ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों की आलोचना गोरखनाथ ने की थीं। ” तंत्र ” उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को कहा जाता है। इसकी सदस्यता विना जाति भेद सबके लिए खुली थी।

👉  शैव धर्म दक्षिण भारत में चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोलों के समय सर्वाधिक लोकप्रिय रहा।

👉 नायनारों द्वारा पल्लव काल में शैव धर्म का प्रचार-प्रसार  किया गया। नायनार सन्तों की संख्या 63 बतायी गयी है जिनमें अप्पार, तिरुज्ञान, सम्बन्दर एवं सुन्दर मूर्ति आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

शैव धर्म के प्रमुख मंदिर

👉 नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में देवपाटन गाँव में पशुपतिनाथ मंदिर स्थित हैं यह मंदिर वागमती नदी के किनारे स्थित हैं यह एक प्रसिद्ध हिन्दू शिव मंदिर है। इस मंदिर को पशुपति नाथ का प्रमुख निवास स्थान माना जाता हैं। इस मंदिर परिसर को यूनेस्को विश्व-सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में सन 1979 में सूची- बद्ध किया गया। यह मंदिर नेपाली पैगोडा शैली में बना हुआ है।

पशुपतिनाथ मंदिर, नेपाल

👉 राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण प्रथम ने एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण 757 ई. से 783 ई. के मध्य करवाया था। यह महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर ( पुराना नाम औरंगाबाद ) में स्थित एलोरा की गुफा संख्या 16 में स्थित हैं। यह मंदिर 276 फीट लम्बा, 154 मीटर चौड़ा और 90 फीट ऊँचा एक पत्थर को काटकर बनाया गया था।

कैलाश मंदिर, औरंगाबाद

👉 चोल शासक राजराज प्रथम ने तमिलनाडु के तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया था, यह बृहदीश्वर मंदिर या पेरुवुटैयार कोविल के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर ग्रेनाइट से पुरी तरह से बना हुआ हैं। इस मंदिर को युनेस्को की विश्व विरासत स्थल में भी शामिल किया गया हैं।

बृहदेश्वर मंदिर या राजराजेश्वर मंदिर

👉 कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव एवं नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।

👉 श्रीकांत शिवाचार्य, शिव अद्वैत विचारधारा के मुख्य प्रवर्तक हैं, इनके अनुसार शिव और ब्रह्म एक और समान हैं।

शिव भगवान के प्रमुख अवतार

महाकाल, पशुपतिनाथ, भुवनेश, भैरव, वीरभद्र, हनुमान, लोकनाथ, सुंदरेश्वर, किरात, सुनट नर्तक, भिक्षुवर्य या भिक्षाटनमूर्ति, कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भ, चण्ड, भव

शैव धर्म के तीर्थ स्थल 

काशी विश्वनाथ, चिदम्बरम, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ ज्योतिर्लिंग, कैलाश मानसरोवर, श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, श्री वैद्येश्वर या श्री‌ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग

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