समुद्रगुप्त के इतिहास से सम्बंधित रोचक कहानी

समुद्रगुप्त का जीवन परिचय

समुद्रगुप्त 

समुद्रगुप्त का जीवन परिचय 

• इस तथ्य में आज हम समुद्रगुप्त के इतिहास से सम्बंधित रोचक कहानी के बारें में महत्वपूर्ण जानकारी के विषय में कुछ चर्चा इस प्रकार हैं कि यह चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी था , जो लगभग 335 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। यह गुप्त वंश का दूसरा महान शासक था। इसका कार्यकाल 335 ईस्वी से लेकर 375 ईस्वी के मध्य माना जाता था। इसने गुप्त वंश पर लगभग 40 वर्षों तक शासन किया था।

समुद्रगुप्त का जीवन परिचय

समुद्रगुप्त के इतिहास से सम्बंधित रोचक कहानी

• आर्यावर्त के 9 शासकों और दक्षिणावर्त के 12 शासकों को समुद्रगुप्त ने पराजित किया था। इनसे विजय पाने में कारण ही इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था। इसलिए इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता हैं। इसने विक्रमंक, परमभागवत ओर अश्वमेधकर्ता की उपाधि धारण की थीं। यह विष्णु का उपासक था। इसे कविराज के नाम से भी जाना जाता है।

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• यह संगीत का बहुत अधिक प्रेमी था। इसका अनुमान उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए का चित्र देखा गया हैं। इसने साहित्य, कला और धर्म कों बहुत अधिक बढ़ावा दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी प्रजा के जीवन स्तर में भी काफी सुधार कर दिया था। उनके राज्य में सुख सुविधाओं के सभी साधन थे।

समुद्रगुप्त के बारें में जानकारी 

• हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था, इसकी जानकारी हरिषेण द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख से मिलती हैं। 

• समुद्रगुप्त प्रथम गुप्त शासक था जिसने परमभागवत की उपाधि धारण की थीं। इसे परमभागवत, गया एवं नालंदा से मिले दो ताम्रलेखों में कहा गया है।

समुद्रगुप्त के शासन का विस्तार 

• इसकी अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ स्थापित किया था।

• इसने अपने कौशल के दम पर पूरे भारत को जीत लिया था। इस देश में मौर्य काल के पतन के बाद कई राजाओं और राज्यों का उदय हुआ था परन्तु मोर्यों का कोई भी मुकाबला नहीं कर सका। समुद्रगुप्त ही एक ऐसे शासक थे जिन्होंने मौर्यों को चुनौती दी थीं और उनके राज्य का विस्तार किया था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थीं। इसने उत्तर में हिमालय के सभी राजाओं को पराजित करने के साथ ही, दक्षिण-पूर्व के शासकों कों अपने राज्य में शामिल होने के लिए मजबूर किया था। समुद्रगुप्त की सेना कांचीपुरम तक प्रभावित थीं।

इसने अखंड भारत का निर्माण किया था। और इसका शासनकाल सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता हैं। 

• यह कला का संरक्षक, वीर योद्धा और एक उदार शासक भी था। जावा पाठ में इसका नाम ‘तनत्रीकमन्दका’ के नाम से प्रकट है। 

समुद्रगुप्त के शासनकाल के सिक्के 

• इसने अपने समय में सोने से लेकर ताँबे तक की मुद्राओं को लागू किया था। तथा इसने अपने शासनकाल में सात तरह के सिक्कों को चलाया था। जिनको इन निम्न नामों से जाना गया था। 

बैकल एक्स, टाइगर स्लेयर, आर्चर, अश्वमेघ, राजा, रानी और लयरिस्ट। 

• इसके बाद गुप्त वंश के उत्तराधिकारी के रूप में इसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय गुप्त वंश का शासक बना था।

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