सातवाहन वंश के सम्पूर्ण इतिहास की जानकारी

सातवाहन वंश का सम्पूर्ण इतिहास

सातवाहन वंश

सातवाहन वंश की उत्पत्ति एवं विकास 

👉 सातवाहन शब्द की उत्पत्ति प्राकृत से हुई हैं जिसका आशय हैं ” सात द्वारा संचालित “। जो कि सात घोड़ो द्वारा संचालित किया जाता हैं। यह हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य भगवान के रथ का एक अर्थ हैं।

सातवाहन वंश का सम्पूर्ण इतिहास

👉 इस वंश के शासक दक्कन और और मध्य भारत में मौर्यों के उत्तराधिकारी के रूप में राज सिंहासन पर बैठे। लगभग 73 ईस्वी पूर्व में शुंग वंश समाप्त हो गया था। शुंग वंश के शासक देवभूति की हत्या वासुदेव कण्ड ने की थीं। उसके बाद वासुदेव ने कण्ड वंश की नींव डाली थीं। कण्ड वंश ने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया और कण्ड वंश के अंतिम शासक सुशर्मन की हत्या कर सिमुक ने सातवाहन वंश की स्थापना की। कण्ड वंश के बाद एक और शक्तिशाली राजवंश, सातवाहन, दक्कन क्षेत्र में सत्ता में आया था

1. कण्ड राजवंश के सम्पूर्ण इतिहास की जानकारी
2. शुंग वंश से संबंधित इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी

👉 सिमुक सातवाहन वंश का पहला राजा था। इस वंश को आंध्र राजवंश या आंध्र-सातवाहन वंश भी कहा जाता हैं। यह प्राचीन भारत का हिन्दू राजवंश था। 150 वर्षों तक सातवाहन वंश के राजाओं ने शासन किया।

👉 इस वंश की नींव सिमुक ने कण्ड वंश के शासक सुशर्मन की हत्या कर की थीं। इस वंश के राजाओं ने लगभग 150 वर्षों तक शासन किया। इस वंश का कार्यकाल 30 ईस्वी पूर्व से लेकर 230 ईस्वी पूर्व के मध्य माना जाता हैं।

👉 इस साम्राज्य के राजकुमारों को “कुमार” कहा जाता था।तथा इनके बड़े पुत्र को युवराज नहीं बनाया जा सकता था। इस वंश के शासक  की आय का मुख्य स्रोत भूमिकर, नमककर एवं न्याय शुल्क था। इनके प्रशासनिक अधिकारियों में अमात्य, महामात्र एवं भण्डारिक प्रमुख थे।

👉 तीन प्रकार के सामन्त इस वंश के शासनकाल में पाये जाते थे-महारथी, महाभोज और महासेनापति। इनमें से सिक्के जारी करने का अधिकार महारथी को था। अधिकतर सिक्के इनके काल में “सीसे” के बनाए जाते थे। सीसे के सिक्कों के अलावा ताँबे एवं काँसे की मुद्राओं का भी प्रचलन होता था। सातवाहनों ने सबसे पहले ब्राह्मणों को भूमिदान एवं जागीर देने की प्रथा का प्रारम्भ  किया था। भूमिदान का सर्वप्राचीन पुरालेखीय प्रमाण शताब्दी ई. पू. के सातवाहनों के नानाघाट अभिलेख से मिलता है, जिसमें अश्वमेध यज्ञ में एक गाँव देने का उल्लेख है। वर्ण संकर कुप्रथा को रोकने के लिए वर्ण प्रथा को गौतमी पुत्र शातकर्णी ने पुनः प्रारम्भ किया था । बौद्धों के लिए अनेक चैत्य और विहार इस काल में बनवाये गये थे।

 👉 इस वंश का समाज मातृसत्तात्मक था। क्योंकि इनके राजाओं का नाम अपनी माता के नाम पर होता था। जैसे कि गौतमी पुत्र शतकर्णी। यह नाम उनकी माता गौतमी बालाश्री के नाम पर रखा गया था। इस वंश का राजकुल पितृसत्तात्मक था, क्योंकि इनके राजसिंहासन का उत्तराधिकारी वंशानुगत ही होता था।

👉 इस वंश का महानतम शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी को माना जाता था। यह इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। इसका शासनकाल 106 ईस्वी से 130 ईस्वी के मध्य था।

👉 इस वंश के शासकों के शासनकाल के प्रसिद्ध साहित्यकार हाल एवं गुणाढ्य थे। हाल ने गायासप्तशती तथा गुणाढ्य ने वृहत्कथा नामक पुस्तकों की रचना की थीं।

👉 सातवाहनों की महत्वपूर्ण स्थापत्य कृतियाँ निम्नानुसार हैं-कार्ते का चैत्य, अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण एवं अमरावती कला का विकास । इस वंश के शतकर्णी एवं अन्य सभी शासक दक्षिणापथ के स्वामी कहे जाते थे।

👉 धरणीकोट नामक स्थानआंध्र प्रदेश के गुन्दूर जिले में स्थित हैं यह सातवाहन युग में धान्यकटक नाम से विख्यात था। यह स्थान अमरावती के निकट था। अमरावती कुछ समय तक सातवाहनों की राजधानी रहा था । इस नगर की प्रसिद्धि का कारण इसकी महत्वपूर्ण व्यापारिक मंडी थीं। यह सातवाहन साम्राज्य के पूर्वी भाग की सबसे बड़ी मंडी थी। यहाँ से उत्तर तथा दक्षिण को अनेक व्यापारिक मार्ग गुजरते थे। महासांधिकों के अधीन यह एक प्रमुख बौद्ध केन्द्र के रूप में समृद्ध हुआ क्योंकि यहाँ के समृद्ध व्यापारियों ने स्तूपों एवं अन्य बौद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया।

👉 इस वंश के शासकों ने उत्तर भारत और दक्षिण भारत के मध्य सेतू का कार्य किया था।

सातवाहन वंश की जानकारी

👉पुराणों और अभिलेखों से इस वंश के इतिहास की जानकारी का पता चलता हैं। इस राजवंश को पुराणों में आंध्र-भृत्य एवं आंध्र-जातीय कहा गया है। इसलिए इसे आंध्र-सातवाहन राजवंश भी कहा जाता हैं। सिमुक के बारें में अधिकांश जानकारी पुराणों और नानाघाट प्रतिमा लेख से मिलती हैं।  सिमुक के बाद उसका छोटा भाई कृष्ण गद्दी पर बैठा। इसके समय में इस वंश का विस्तार पश्चिम में नासिक तक हुआ। कृष्ण के बाद शातकर्णी प्रथम शासक हुआ। यह इस वंश का “शातकर्णी” उपाधि धारण करने वाला प्रथम राजा था। इसके शासन के बारे में अधिकांश जानकारी इसकी रानी नागानिका के “नानाघाट” अभिलेख से मिलती है। शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेध यज्ञ तथा एक राजसूय यज्ञ सम्पन्न कर सम्राट की उपाधि धारण की। इसने दक्खिनापथपति एवं अप्रतिहतचक्र की उपाधि भी धारण की थी। इसने सातवाहन साम्राज्य का दक्षिण में विस्तार किया। सम्भवतः मालवा भी इसके अधिकार क्षेत्र में था। इसके अतिरिक्त इसने अनूप एवं विदर्भ प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की। इसकी मुद्राओं में “श्रीसात” नाम खुदा हुआ मिलता है। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इसने ब्राह्मणों तथा बौद्धों को भूमि दान में दी। यह ब्राह्मण थे और वासुदेव, कृष्ण जैसे देवताओं की पूजा करते थे।

सातवाहन वंश के प्रमुख शासक

सिमुक

👉 इसको सातवाहन वंश का संस्थापक माना जाता हैं। इसने कण्ड वंश के सुशर्मन की 30 ईस्वी पूर्व हत्या कर इस वंश की नींव रखी थीं। और अशोक की मृत्यु के तुरंत बाद सक्रिय हो गया था।

👉 इसने जैन एवं बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया था। इसके बारें में जानकारी पुराणों और नानाघाट लेख के प्रतिमा से प्राप्त होती हैं। इसने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान को महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के किनारे संभाजीनगर ( औरंगाबाद ) स्थापित की थीं।

शातकर्णी प्रथम 

👉 यह सातवाहन साम्राज्य का तीसरा शासक था। इस वंश के दूसरे शासक कृष्ण के बाद यह उसके उत्तराधिकारी के रूप में राज सिंहासन पर बैठा था। सातवाहन राजवंश का यह पहला राजा था, जिसने सैन्य विजय द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसने कलिंग पर खारवेल की मृत्यु के बाद विजय प्राप्त की थीं। उसने पाटलिपुत्र में शुंगों कों पराजित क्र दिया था।

👉 इसने गोदावरी घाटी पर कब्ज़ा कर लिया था इस पर कब्जा करने के बाद उसने दक्षिणापथ के भगवान’ की उपाधि धारण की थीं।

👉 इसने दो अश्वमेध तथा एक राजसूय यज्ञ किया। और दक्कन में वैदिक ब्राह्मणवाद को पुनर्जीवित किया। नानेघाट शिलालेख उनकी रानी नयनिका ने लिखा था, जिसमें राजा को दक्षिणापथपति के रूप में वर्णित किया गया है।

गौतमी पुत्र शातकर्णी

👉 यह सातवाहन राजवंश का सबसे महत्वपूर्ण राजा माना जाता हैं इसका शासनकाल 106 ईस्वी से 130 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं इनकी माता का नाम गौतमी बालाश्री था और इसलिए इनका नाम इनकी माता के नाम पर गौतमी पुत्र शातकर्णी रखा गया था। यह ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था इसलिए यह खुद कों एकमात्र ब्राह्मण कहता था। इसने कई क्षत्रिय शासको को नष्ट कर दिया और शकों कों पराजित कर दिया था।

गौतमी पुत्र शातकर्णी

👉 ऐसा कहा जाता हैं कि उसने क्षहरता वंश को नष्ट कर दिया था, जिससे उसका विरोधी नहपान था। उसने नहपान के 800 से अधिक चांदी के सिक्के (नासिक के पास पाए गए) पर सातवाहन राजा द्वारा पुन: चलवाए जाने के निशान हैं। पश्चिमी क्षत्रपों का एक महत्वपूर्ण राजा नहपान था। एक समय सातवाहन ऊपरी दक्कन और पश्चिमी भारत में अपने प्रभुत्व से बेदखल हो गए थे। उनका राज्य दक्षिण में कृष्णा से लेकर उत्तर में मालवा और सौराष्ट्र तक और पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक था। इसके राज्य की सीमा दक्षिण में गोदावरी से लेकर उत्तर में मालवा एवं काठियावाड़ तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैली हुई थी।

👉 उनकी माता गौतमी बालाश्री के नासिक शिलालेख में उन्हें शक, पहलव और यवन (यूनानी) का विनाशक बताया गया है । क्षहरातों के विनाशक और सातवाहनों के गौरव को पुनर्स्थापित करने वाले के रूप में। उन्हें एकब्राह्मण (एक अद्वितीय ब्राह्मण) और खटिया-दापा-मनमदा (क्षत्रिय के गौरव को नष्ट करने वाला) के रूप में भी वर्णित किया गया है। इन्होंने राजराज, महाराज एवं वेणकटक स्वामी की उपाधि दी धारण की थीं।

वासिष्ठी पुत्र पुलुमावी 

👉 यह गौतमीपुत्र शातकर्णी के बाद राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल 130 ईस्वी से लेकर 154 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसके समय के सिक्के और शिलालेख  आंध्रप्रदेश से मिले हैं। इसका विवाह जूनागढ़ शिलालेख के अनुसार रुद्रदामन Ⅰ की पुत्री से हुआ था। पूर्व में उसकी व्यस्तताओं के कारण पश्चिमी भारत के शक-क्षत्रपों ने अपने कुछ क्षेत्र पुनः प्राप्त कर लिए  ।

यज्ञ श्री शातकर्णी 

👉 यह सातवाहन साम्राज्य के शासको में से एक शासक था। उसने शक शासको को पुन: पराजित कर उत्तरी कोकण और मालवा को प्राप्त किया था। 

👉 वह व्यापार और नौपरिवहन का प्रेमी था, जैसा कि उसके सिक्कों पर जहाज की आकृति से स्पष्ट है । उनके सिक्के आंध्र, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में पाए गए हैं।

सातवाहन वंश का विस्तार

👉 इस वंश का प्रशासन पूरी तरह से शास्त्रों पर आधारित था। इस वंश की राजधानी प्रतिष्ठान थीं यह छत्रपति संभाजीनगर जिले में महाराष्ट्र में स्थित हैं। इस साम्राज्य की राजकीय भाषा मराठी, प्राकृत और संस्कृत थीं, जो ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती थीं। इसके कार्यकाल में अमरावती कला का विकास हुआ था। इस वंश का विस्तार कृष्ण के समय में पश्चिम में नासिक तक हुआ हैं।

👉 इस वंश का साम्राज्य प्रमुख रूप से वर्तमान में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना फैला हुआ हैं, कभी-कभी उनके शासन में गुजरात, कर्नाटक के साथ-साथ मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से भी शामिल थे।

सातवाहन साम्राज्य के सिक्के

👉 सिक्के जारी करने का अधिकार महारथी को था। अधिकतर सिक्के इनके काल में “सीसे” के बनाए जाते थे। सीसे के सिक्कों के अलावा ताँबे एवं काँसे की मुद्राओं का भी प्रचलन होता था।

सातवाहन वंश के सिक्के

👉 इस वंश के शासकों में समय चाँदी, ताँबे , सीसा, पोटीन और कॉसे की मुद्राओं का प्रचलन था। इस वंश के शासक सीसे का सिक्का ढालने में जिस सीसे का इस्तेमाल करते थे, उस सीसे को रोम से मंगाया जाता था। सिक्कों की कथाएँ प्राकृत भाषा में थीं । उलटे सिक्के की कुछ कथाएँ तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में भी हैं।

👉 सातवाहनों के सिक्के दक्कन, पश्चिमी भारत, विदर्भ, पश्चिमी और पूर्वी घाट आदि से खोदे गए हैं। कई सातवाहन सिक्कों पर ‘शातकर्णी’ और ‘पुलुमावी’ के नाम अंकित हैं।

सातवाहन सिक्के विभिन्न आकार के होते थे – गोल, चौकोर, आयताकार आदि।

सातवाहन शासकों की सैन्य व्यवस्था

👉 इस वंश के शासकों ने गौल्मिक कों ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन का काम सौंपा। एक सैनिक टुकड़ी का प्रधान गौल्मिक होता था जिसमें नौ रथ, नौ हाथी, पच्चीस घोड़े और पैंतालीस पैदल सैनिक होते थे।

प्रश्न – सातवाहन साम्राज्य का संस्थापक किसे माना जाता हैं?

उत्तर – सातवाहन साम्राज्य का संस्थापक सिमुक को माना जाता हैं यह इस साम्राज्य का प्रथम शासक था। इसने कण्ड वंश के शासक सुशर्मन की हत्या कर इस वंश की नींव रखी थीं।

प्रश्न – सातवाहन साम्राज्य का सबसे महान सम्राट कौन था?

उत्तर – सातवाहन साम्राज्य का सबसे महान सम्राट गौतमी पुत्र शातकर्णी था। यह इस साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली राजा था। इसने इस वंश पर लगभग 24 वर्षों तक शासन किया था इसका शासनकाल 106 ईस्वी से लेकर 130 ईस्वी तक के मध्य रहा था।

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