Vakataka Dynasty
वाकाटक राजवंश के इतिहास की उत्पत्ति
आज हम वाकाटक राजवंश के इतिहास की घटनाओं के बारें में महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। वाकाटक वंश भारत का एक नया राजवंश था। वाकाटक के शासकों ने लगभग तीसरी शताब्दी के मध्य से लेकर छठी शताब्दी के मध्य तक शासन किया था। वाकाटक राजवंश की स्थापना विन्ध्यशक्ति नामक व्यक्ति ने लगभग 255 ईस्वी में की थीं। इसके पूर्वज बरार ( विदर्भ ) के स्थानीय शासक सातवाहनों के अधीन थे। अजंता लेख में विन्ध्यशक्ति का नाम वायुपुराण मिलता हैं।
वकाटक राजवंश के इतिहास के प्रमुख शासक
क्र.सं. | शासक | शासनकाल |
---|---|---|
1. | विन्ध्यशक्ति | 250 ईस्वी से 270 ईस्वी तक |
2. | प्रवरसेन प्रथम | 270 ईस्वी से 330 ईस्वी तक |
विन्ध्यशक्ति के बाद इसका पुत्र प्रवरसेन प्रथम उत्तराधिकारी बना। इसका शासनकाल 270 ईस्वी से 330 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। यह एक अकेला वाकाटक वंश ऐसा शासक था जिसने सम्राट की उपाधि धारण की थीं। इसने चार अश्वमेध यज्ञ करवाये थे इसका पता पुराणों से चलता है।
प्रवरसेन प्रथम के बाद वाकाटक राजवंश दो भागों में विभाजित हो गया था। प्रवरपुर–नन्दिवर्धन शाखा ( प्रधान शाखा ) तथा बासीय (वत्सगुल्म) शाखा। दोनों शाखाओं ने समानान्तर रूप से शासन किया।
प्रवरपुर नंदिवर्धन शाखा ( प्रधान शाखा ) के प्रमुख शासक
क्र.सं. | शासक | शासनकाल |
---|---|---|
1. | रूद्रसेन प्रथम | 330 ईस्वी से 355 ईस्वी तक |
2. | पृथ्वीसेन प्रथम | 355 ईस्वी से 380 ईस्वी तक |
3. | रूद्रसेन द्वितीय | 380 ईस्वी से 385 ईस्वी तक |
4. | दिवाकर सेन | 385 ईस्वी से 400 ईस्वी तक |
5. | प्रभावती गुप्ता का संरक्षण काल | 390 ईस्वी से 410 ईस्वी तक |
6. | प्रवरसेन द्वितीय | 410 ईस्वी से 440 ईस्वी तक |
7. | नरेन्द्र सेन | 440 ईस्वी से 460 ईस्वी तक |
8. | पृथ्वीसेन द्वितीय | 460 ईस्वी से 480 ईस्वी तक |
वाकाटक राजवंश के इतिहास की प्रधान शाखा
गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने वाकाटक राजा रूद्रसेन द्वितीय से अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह करवाया था। रूद्रसेन प्रथम का शासनकाल 330 ईस्वी से 355 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। शक और गुप्त राज्यों के बीच में वाकाटकों का राज्य था। यह सम्बन्ध चन्द्रगुप्त द्वितीय ने राज्यों पर विजय प्राप्त करने के लिए स्थापित किया था। रूद्रसेन द्वितीय की मृत्यु उसके विवाह के कुछ समय बाद ही हो गई थीं। रूद्रसेन द्वितीय के पुत्र दामोदर सेन और दिवाकर सेन अवयस्क थे इसलिए प्रभावती गुप्ता ने इस वंश को संभाला था। इसका शासनकाल लगभग 390 ईस्वी से 410 ईस्वी के मध्य था। इस काल को वाकाटक गुप्त संबंध का स्वर्णकाल कहा जाता हैं।
प्रभावतीगुप्ता के शासन काल के बाद प्रवरसेन द्वितीय के नाम पर उसका कनिष्ठ पुत्र दामोदर सेन राज सिंहासन पर बैठा था। प्रवरसेन द्वितीय का शासनकाल लगभग 410 ईस्वी से लेकर 440 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं।
प्रवरसेन द्वितीय के बाद इसके उत्तराधिकारी के रूप में नरेन्द्र सेन राज सिंहासन पर बैठा था और इसका कार्यकाल लगभग 440 ईस्वी से लेकर 460 ईस्वी में मध्य माना जाता हैं।
वाकाटकों की प्रधान शाखा का सबसे अंतिम राजा पृथ्वीसेन द्वितीय था। इसका शासनकाल लगभग 460 ईस्वी से लेकर 480 ईस्वी के मध्य था। उसके बाद इस राज्य का शासन बासीय शाखा के राजा हरिषेण के हाथों में चला गया। पृथ्वीसेन द्वितीय को वाकाटक वंश के खोये हुए भाग्य का निर्माता’ कहा जाता है। इसने अपनी राजधानी पद्मपुर को बनाया था।
बासीय ( वत्सगुल्म ) या वातीम शाखा के वाकाटक
वाकाटक राजवंश के इतिहास के इस बासीय शाखा की स्थापना राजा प्रवरसेन के छोटे पुत्र सर्वसेन ने लगभग 330 ईस्वी में की थीं और राज सिंहासन पर बैठा था। इसने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना वत्सगुल्म नामक स्थान पर की थीं। वत्सगुल्म महाराष्ट्र के अकोला जिले में आधुनिक बासीम में स्थित था।
बासीम शाखा के प्रमुख शासक
क्र.सं. | शासक | शासनकाल |
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1. | सर्वसेन | 330 ईस्वी से 350 ईस्वी तक |
2. | विन्ध्यसेन द्वितीय | 350 ईस्वी से 400 ईस्वी तक |
3. | प्रवरसेन द्वितीय | 400 ईस्वी से 415 ईस्वी तक |
4. | सर्वसेन द्वितीय | 415 ईस्वी से 450 ईस्वी तक |
5. | देवसेन | 450 ईस्वी से 475 ईस्वी तक |
6. | हरिषेण | 475 ईस्वी से 510 ईस्वी तक |
vakataka Dyanasty की बासीम शाखा
सर्वसेन बासीम शाखा का सबसे पहला शासक था जिसका कार्यकाल लगभग 330 ईस्वी से 350 ईस्वी के मध्य माना जाता था।
मराठी प्राकृत काव्य सेतुबन्ध की रचना वाकाटक वंश के शासक प्रवरसेन द्वितीय ने तथा हरिविजय नामक प्राकृत काव्य-ग्रंथ की रचना सर्वसेन ने की थीं। वाकाटक शासकों के दरबार में संस्कृत की वैदर्भी शैली का पूर्ण विकास हुआ हैं।
विन्ध्यसेन द्वितीय सर्वसेन का उत्तराधिकारी था। इसने विन्ध्यशक्ति और धर्ममहाराज की उपाधि धारण की थीं। और इसका शासनकाल लगभग 350 ईस्वी से 400 ईस्वी के मध्य था।
प्रवरसेन द्वितीय की राजसभा में चन्द्रगुप्त द्वितीय के राजकवि कालिदास ने कुछ समय तक निवास किया था। इन्होंने उसके सेतुबन्ध का संशोधन किया और अपना काव्य वैदर्भी शैली में सम्पादित किया। तथा इसका कार्यकाल 440 ईस्वी से लेकर 410 ईस्वी के बीच में था।
Vakataka Dynasty के शासक ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे। यह विष्णु तथा शिव के उपासक थे।
वाकाटक वंश के शासक पृथ्वीसेन द्वितीय के समानांतर शासक व्याध्रदेव ने नचना के मंदिर का निर्माण करवाया था।
वाकाटकों के शासनकाल में अजन्ता की सोलहवीं और सत्रहवीं गुहा विहार तथा उन्नीसवीं गुहा चैत्य का निर्माण हुआ हैं।
वाकाटक राजवंश के इतिहास का सबसे अंतिम महान और शक्तिशाली शासक हरिषेण था। और इसका शासनकाल 475 ईस्वी से 510 ईस्वी के मध्य माना जाता था।