चन्देल वंश
चन्देल वंश के इतिहास की घटनाओं का सम्पूर्ण उल्लेख
आज हम इस लेख में चन्देल वंश के इतिहास की घटनाओं का सम्पूर्ण उल्लेख करेंगे। यह टॉपिक आप प्रतियोगिता परीक्षा के लिए पढ़ सकते हैं।
चन्देल वंश की स्थापना लगभग 831 ईस्वी ने नन्नुक ने की थीं। इस वंश की शुरुआत प्रतिहार वंश के पतन के बाद बुंदेलखंड की भूमि पर हुई। जेजाकभुक्ति बुंदेलखंड का प्राचीन नाम हैं। चन्देल वंश की प्रारम्भिक राजधानी कालिंजर ( महोबा ) उत्तरप्रदेश में थीं। यह बाद में स्थानांतरित कर मध्यप्रदेश के खजुराहो बनाई गई थीं। जेजाकभुक्ति खजुराहो के चन्देल वंश की राजधानी थीं यह खजुराहो का प्राचीन नाम हैं जो छतरपुर जिले में मध्यप्रदेश में स्थित हैं।
यशोवर्मन चन्देल वंश का सबसे महान प्रतापी शासक और प्रथम स्वतंत्र शासक था। प्रतिहार वंश के शासक देवपाल को कन्नौज पर आक्रमण कर यशोवर्मन ने हराया था। तथा उनसे एक विष्णु की प्रतिमा प्राप्त कर विष्णु मंदिर खजुराहो में स्थापित की थीं।
यह जानकारी आप www.secondcoaching.com पर पढ़ रहे हैं। पोस्ट पसंद आयी हो और ऐसी ही पोस्ट पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट से जुड़े रहे।
चन्देल वंश के शासक धंगदेव ने खजुराहो में 99 ईस्वी में कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। तथा इसने विश्वनाथ, वैद्यनाथ और जिन्ननाथ मंदिर का निर्माण भी करवाया था। शिव की आराधना करते हुए गंगा-जमुना नदी के संगम पर धंगदेव ने अपना शरीर त्याग दिया था।
कन्नौज के प्रतिहार वंश के राजा राज्यपाल की हत्या चन्देल वंश के शासक विद्याधर ने की थीं। क्योंकि इसने अपना आत्मसमर्पण महमूद के आक्रमण का सामना किए बिना ही कर दिया था।
महमूद गजनी की महत्वाकांक्षाओं का सफलतापूर्वक प्रतिरोध करने वाला एकमात्र भारतीय नरेश विद्याधर था।
प्रबोध चन्द्रोदय की रचना चन्देल वंश के शासक कीर्तिवर्मन की राज्यसभा में रहने वाले कृष्ण मिश्र ने की थीं। कीर्तिसागर नामक जलाशय का निर्माण महोबा के निकट इन्होंने ही करवाया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता चन्देल वंश के अंतिम शासक परमर्दिदेव ने 1205 ईस्वी में स्वीकार कर ली थीं। इस पर परमर्दिदेव की हत्या इसी के मंत्री अजयदेव ने की थीं।
चन्देल वंश के शासकों की सूची
शासक | शासनकाल |
---|---|
नन्नुक | 831 ईस्वी से लेकर 845 ईस्वी तक |
वाक्पति | 845 ईस्वी से लेकर 865 ईस्वी तक |
जयशक्ति (जयाशक्ति) और विजयशक्ति | 865 ईस्वी से लेकर 889 ईस्वी तक |
राहिला | 889 ईस्वी से लेकर 916 ईस्वी तक |
श्री हर्ष | 916 ईस्वी से लेकर 925 ईस्वी तक |
यशो-वर्मन | 925 ईस्वी से लेकर 950 ईस्वी तक |
धंग-देव | 950 ईस्वी से लेकर 999 ईस्वी तक |
गंडा-देवा | 999 ईस्वी से लेकर 1002 ईस्वी तक |
विद्याधर | 1003 ईस्वी से लेकर 1035 ईस्वी तक |
विजय-पाल | 1035 ईस्वी से लेकर 1050 ईस्वी तक |
देव-वर्मन | 1050 ईस्वी से लेकर 1060 ईस्वी तक |
कीर्ति-वर्मन | 1060 ईस्वी से लेकर 1100 ईस्वी तक |
सल्लक्षण-वर्मन | 1100 ईस्वी से लेकर 1110 ईस्वी तक |
जया-वर्मन | 1110 ईस्वी से लेकर 1120 ईस्वी तक |
पृथ्वी-वर्मन | 1120 ईस्वी से लेकर 1128 ईस्वी तक |
मदन-वर्मन | 1128 ईस्वी से लेकर 1164 ईस्वी तक |
यशो-वर्मन द्वितीय | 1164 ईस्वी से लेकर 1165 ईस्वी तक |
परमर्दि-देवा | 1165 ईस्वी से लेकर 1203 ईस्वी तक |
त्रैलोक्य-वर्मन | 1203 ईस्वी से लेकर 1245 ईस्वी तक |
वीर-वर्मन | 1245 ईस्वी से लेकर 1285 ईस्वी तक |
भोज-वर्मन | 1285 ईस्वी से लेकर 1288 ईस्वी तक |
हम्मीर-वर्मन | 1288 ईस्वी से लेकर 1311 ईस्वी तक |
वीर-वर्मन द्वितीय | 1311 ईस्वी से लेकर 1315 ईस्वी तक |
चन्देल वंश के शासकों ने पाल और राष्ट्रकूट वंश के शासकों के खिलाफ त्रिपक्षीय युद्ध जीता था। खजुराहो के चन्देल वंश के शासक पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने आप को सोम या चन्द्र उत्तराधिकारी अर्थात् ऋषि चंद्रोदय के पुत्र मानते हैं।
इस प्रकार चंद्रवशी क्षत्रिय के रूप में पहचाने जाते हैं।
चन्देल वंश के इतिहास की जानकारी का पता निम्नानुसार स्त्रोतों से लगाया जा सकता हैं।
- कृष्णमित्र द्वारा प्रबोध-चन्द्रोदय
- जगनिक द्वारा परिमल-रासो
- चन्द्रवरदायी द्वारा प्रथ्वीराज-रासो
- दरबारी कवि राजशेखर का साहित्य (विद्धासलभंजिका बालभारत, कर्पूरमंजरी, बालरामायण, काव्यमीमांसा)
- चंदेल वंश के शासकों के शिलालेख जैसे यशोवर्मन शिलालेख, धंग शिलालेख, आदि
चन्देल वंश के शासकों का वर्गीकरण
नन्नुक
खजुराहो के चन्देल वंश की स्थापना नन्नुक ने की थीं इसलिए इसे खजुराहो के चन्देल वंश का संस्थापक माना जाता हैं। इनके पास महीपति या नृपति की उपाधि लक्ष्मा मंदिर के शिलालेख के अनुसार हैं। इसका शासनकाल लगभग 831 ईस्वी से लेकर 845 ईस्वी के मध्य था। कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासकों के सामंत के रूप में इसने शासन किया था।
वाक्पति
वाक्पति नन्नुक का पुत्र था और नन्नुक के उत्तराधिकारी के रूप में 845 ईस्वी में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 845 ईस्वी से लेकर 865 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसकी जानकारी का उल्लेख माउप्रास्टार शिलालेख से मिलता हैं। इसने अवन्ति पर आक्रमण कर उस पर विजय प्राप्त कर ली थीं।
जयशक्ति और विजयशक्ति
वाक्पति के दो पुत्र थे – जयशक्ति और विजयशक्ति। जेजाक के नाम से जयशक्ति को भी जाना जाता हैं। और इन्हीं के नाम पत खजुराहो का पुराना नाम जेजाकभुक्ति पड़ा था। इसका शासनकाल 865 ईस्वी से लेकर 882 ईस्वी तक था और विजय शक्ति का शासनकाल 882 ईस्वी से लेकर 889 ईस्वी के बीच में था।
राहिला
इसका शासनकाल लगभग 889 ईस्वी से लेकर 916 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसकी वीरता का उल्लेख यशोवर्मन के लक्ष्मण मंदिर के शिलालेख से मिलता हैं। इसने अपनी बेटी का विवाह त्रिपुरी के कल्चुरी शासक कोक्कल प्रथम से करवाया था। इसने सूर्य मंदिर का निर्माण पंचायतन शैली में छतरपुर में करवाया था। इसने कई तालाब, बांध, मंदिर और झीलों का निर्माण भी करवाया था। इसने वर्तमान में बाँदा जिले में स्थित रायसीन नामक नगर भी बसाया था।
श्री हर्ष
यह राहिला के उत्तराधिकारी के रूप में राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल लगभग 916 ईस्वी से लेकर 925 ईस्वी में मध्य था। इसके व्यक्तित्व के बारें में जानकारी नैनोरा कॉपरप्लेट के पाठ से मिलती हैं। इसने कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासकों की मदद पाल शासक महिपाल के खिलाफ की थीं।
यशोवर्मन
यशोवर्मन का शासनकाल 925 ईस्वी से 950 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। यह खजुराहो के चन्देल वंश का पहला स्वतंत्र शासक था। इसका शासन कश्मीर से बंगाल तक तथा हिमालय से मालवा तक फैला था इसका उल्लेख लक्ष्मा मंदिर के शिलालेख से प्राप्त होता हैं। कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासक देवपाल को इसी ने पराजित किया था। चेदी वंश पर भी इसी ने विजय प्राप्त की थीं। इसने कालिंजर का किला राष्ट्रकूटों से जीत लिया था। मालवा के शासक सियाका द्वितीय को इसी ने पराजित किया था। वास्तुकला के क्षेत्र में योगदान विष्णु मंदिर को चतुर्भुज मंदिर भी कहा जाता हैं।
धंगदेव
यह खजुराहो के चन्देल वंश के इतिहास में पहला वास्तविक स्वतंत्र शासक था इसने अपनी राजधानी खजुराहो से कालिंजर स्थानांतरित की थीं। इसका शासनकाल लगभग 950 ईस्वी से लेकर 999 ईस्वी तक माना जाता हैं। इस शासन के बाद इन्होंने प्रयाग संगम पर अपने प्राण त्याग दिए थे।
इन्होंने ग्वालियर का किला कछवाहा वंश के शासक जीत लिया था। इन्होंने काशी पर भी विजय प्राप्त की थीं। नन्नोरा ताम्रपत्र से प्रयाग का उल्लेख मिलता हैं। क्रिथा, सिंहल, कौशल और कुंतल राज्यों के विजेता के रूप में इसका उल्लेख खजुराहो के विश्वनाथ मंदिर के शिलालेख में किया गया हैं। इन्होंने हिन्दू शाही साम्राज्य के जयपाल की मदद शुबुक्तिगिन के आक्रमण के विरुद्ध की थीं।
इन्होंने विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, जिननाथ ( पार्श्वनाथ ) मंदिर का निर्माण पुरा करवाया था तथा इसके सैन्य अधिकारी कोकल द्वारा वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
गंडादेव
यह धंगदेव के उत्तराधिकारी के रूप में राजगद्दी पर बैठा था। इसका शासनकाल 999 ईस्वी से 1002 ईस्वी तक था। इसके बारें में जानकारी कुण्डेश्वर के ताम्रपत्र अभिलेख से मिलती हैं। इसके शासनकाल के दौरान जगदम्बी मंदिर और चित्रगुप्त मंदिर का निर्माण शुरुआत हुआ था।
विद्याधर
यह खजुराहो के चन्देल वंश का सबसे महान और शक्तिशाली राजा माना जाता हैं। इसका शासनकाल 1003 ईस्वी से लेकर 1035 ईस्वी के बीच में था। इसका उल्लेख चरखारी ताम्रपत्र, जयवर्मा के शिलालेख और देववर्मा द्वारा लिखित नन्नोरा ताम्रपत्र से प्राप्त होता हैं। चन्देल राजवंश के शासक विद्याधर ने खजुराहो का प्रसिद्ध मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे युनेस्को द्वारा 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
हम्मीर वर्मन खजुराहो के चन्देल राजवंश का अंतिम शासक था। इसका शासनकाल 1288 ईस्वी से 1311 ईस्वी के बीच में था। और चन्देल वंश का सबसे अंतिम शासक वीर वर्मन द्वितीय था जिसका शासनकाल 1311 ईस्वी से 1315 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं।