कश्मीर का राजवंश
आज हम इस लेख में कश्मीर पर शासन करने वाले सभी वंश का इतिहास जानने का प्रयास करेंगे। इसमें हम कश्मीर के वंश और उनसे संबंधित शासकों पर पूरे विस्तार से टिप्पणी करेंगे। कश्मीर पर शासन करने वाले सभी शासकों का कालानुक्रम निम्नानुसार हैं।
कार्कोट वंश, उत्पल वंश, लौहार वंश।
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कार्कोट वंश
इस वंश की स्थापना दुर्लभ वर्द्धन ने लगभग 627 ईस्वी में की थीं। इस शासक के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कश्मीर की यात्रा की थीं।
ललितादित्य मुक्तापीड इस वंश का सबसे महान और शक्तिशाली राजा था। इसका शासनकाल लगभग 724 ईस्वी से लेकर 760 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं। इसने कश्मीर में स्थित मार्तण्ड मंदिर का निर्माण करवाया था। इसने चीनी शासक के दरबार में लगभग 733 ईस्वी में एक दूत मण्डल भेजा था।
तुर्की, तिब्बतियों, कम्बोजो को ललितादित्य ने पराजित किया था। इनको पर विजय प्राप्त करके गुप्तों के बाद कश्मीर राज्य को सबसे शक्तिशाली राज्य बना लिया था।
ललितादित्य मुक्तापीड ने अनेक विहारों, भवनों और मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसने सूर्य का प्रसिद्ध मार्तण्ड मंदिर का निर्माण भी करवाया था। परिहासपुर नामक नगर को ललितादित्य मुक्तापीड ने बसाया था।
इस वंश का सबसे महान और अंतिम शक्तिशाली शासक जयापीड विनयादित्य था। इसका शासनकाल लगभग 770 ईस्वी से लेकर 810 ईस्वी के मध्य माना जाता हैं।
कश्मीर वंश के पतन के बाद में अवन्तिवर्मन ने उत्पल वंश की नींव डाली थीं।
उत्पल वंश
कश्मीर के प्रमुख राजवंशों में से उत्पल वंश प्रमुख माना जाता हैं। इस वंश के काल में कश्मीर का सबसे अधिक विस्तार हुआ हैं। इस वंश का शासनकाल लगभग 855 ईस्वी से 883 ईस्वी के बीच में स्थापित हुआ था। उत्पल वंश की स्थापना अवन्तिवर्मन ने की थीं इसलिए अवन्ति वर्मन को इस वंश का संस्थापक माना जाता हैं। इसने अपने नाम पर अवन्तिपुर नामक नगर की स्थापना की थीं।
सिंचाई के लिए अवन्तिवर्मन के अभियंता सूय्य ने नहरों का निर्माण करवाया था। अवन्ति स्वामी मंदिर का निर्माण अवन्ति वर्मन ने करवाया था।
अवन्ति वर्मन के उत्तराधिकारी के रूप में शंकर वर्मन राज सिंहासन पर बैठा था। इसका शासनकाल 885 ईस्वी से लेकर 902 ईस्वी के मध्य था।
लगभग 950 ईस्वी में क्षेमेन्द्रगुप्त राज सिंहासन पर बैठा था। लौहार वंश की शासिका दिद्दा से क्षेमेन्द्रगुप्त का विवाह हुआ था।
इस वंश की महत्वकांक्षिणी शासिका दिद्दा 980 ईस्वी में शासिका बनी थीं। उत्पल वंश के पतन के बाद में कश्मीर पर लौहार वंश के शासकों ने शासन किया।
लौहार वंश
सग्रामराज इस वंश का संस्थापक था। इसका शासनकाल लगभग 1003 ईस्वी से लेकर 1028 ईस्वी के मध्य तक था। भटिंडा के शाही शासक त्रिलोचन पाल की ओर से संग्राम राज ने अपने मंत्री तुंग को महमूद गजनवी से लड़ने के लिए भेजा था।
संग्रामराज के बाद इस वंश का पर अनंत राज सिंहासन पर बैठा था। प्रशासन को सुधारने में अनंत की पत्नी सूर्यमती ने इसकी सहायता की थीं।
हर्ष लौहार वंश का शासक था यह विद्वान, कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता भी था। हर्ष का आश्रित कवि कल्हण था। ” कश्मीर का नीरों ” हर्ष को कहा जाता हैं। 1101 ईस्वी में विद्रोहियों का मुकाबला करते हुए हर्ष मारा गया था।
लौहार वंश का सबसे अंतिम शासक जयसिंह था जिसने लगभग 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी के मध्य शासन किया था। कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण जयसिंह के शासनकाल के साथ ही समाप्त हो गया था। कल्हण की राजतरंगिणी से कश्मीर के हिन्दू राज्य के इतिहास का पता चलता हैं। इसकी रचना महाभारत की शैली के आधार पर की गई हैं। कल्हण ब्राह्मण जाति का था।